गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 37
प्रेतगणों के पलायन कर जाने पर भैरव क्रोध से भर गए थे। वे कुत्ते पर सवार हो, त्रिशूल हाथ में लिए काल की भाँति आ पहुँचे। नरेश्वर ! उन काल भयंकर भैरव देखकर कोई भी उनके साथ जूझने के लिए तैयार नहीं हुआ। केवल अनिरुद्ध उनके साथ युद्ध करने लगे। अनिरुद्ध ने युद्धस्थल में भैरव को पाँच बाण मारे। भैरव ने भी परिघ के प्रहार से उनके उत्तम रथ को चूर–चूर कर दिया। फिर अनिरुद्ध ने भी दूसरे रथ पर आरूढ़ होकर अपने सुदृढ़ धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर मायावी भैरव को रणभूमि में दस बाणों द्वारा घायल कर दिया। उन बाणों से आहत हो भैरव को कुछ मूर्च्छा सी आ गई। फिर उन्होंने अग्नि के समान प्रज्वलित तीन शिखाओं वाला त्रिशूल अनिरुद्ध पर फेंका। शूल को या देख प्रद्युम्न कुमार ने अपने बाणों द्वारा उसके टुकड़े–टुकड़े कर डाले। अपने त्रिशूल को छिन्न-भिन्न हुआ देख बलवान रुद्रकुमार भैरव ने माया द्वारा अपने मुख से अग्नि की सृष्टि की। उस अग्नि से भूमि, वृक्ष और दसों दिशाएं जलने लगीं। पैदल वीरों, रथारोहियों, घोड़ों तथा हाथियों के शरीर सुंदर फूलवाले सेमर की रुई के समान जलने लगे। कितने ही वीर आग की ज्वाला की लपेट में आ गए और कितने ही आग में भस्म हो गए। सारी सेना अग्नि ज्वाला से व्याप्त हो गई। कितने ही योद्धा भगवान श्रीकृष्ण का चिंतन करने लगे । अपनी सेना को भय से व्याकुल देख और भैरव की रची हुई माया को जान कर धनुर्धरों में श्रेष्ठ अनिरुद्ध ने अपने धनुष। पर एक बाण रखा। उस सायक को पर्जन्यास्त्र से अभिमंत्रित कर के श्रीकृष्ण के चरणारविंदों का चिंतन करते हुए शीघ्र ही आकाश में छोड़ दिया । राजन ! उस बाण के छूटते ही मेघ प्रकट होकर पानी बरसाने लगे। आग बुझ गई और ऐसा प्रतीत होने लगा, मानों वर्षा काल आ गया हो। मोर, कोयल, चातक, सारस और मेंढ़क आदि बोलने लगे। यत्र तत्र इंद्र गोप (वीरबहुटी नामक कीड़े) शोभा पाने लगे। आकाश इंद्रधनुष और बिजली की चमक से दीप्तिमान हो उठा। अपना प्रयास निष्फल हुआ देख भैरव ने अपने मुख से भैरव गर्जना की। जिससे सबका मन संत्रस्त हो उठा। उस भैरवनाद से समस्त लोकों और पातालों सहित सारा ब्रह्माण्ड गूंज उठा। दिग्गज विचलित हो उठे, तारे टूटने लगे और उनसे भूखण्ड मंडल चमक उठा। उसी समय समस्त मनुष्य बहरे हो गए और गिर गए । फिर सर्पों से विभूषित भैरव ने क्रुद्ध हो हाथ से हाथ को दबाते, दांतों से ओठ को चबाते, जीभ लपलपाते और लाल–लाल नेत्रों से देखते हुए यदुकुल तिलक अनिरुद्ध को तिनके के समान समझकर एक तीखा फरसा हाथ में लिया। उसी समय रणनीति में कुशल अनिरुद्ध ने जृम्भणास्त्र का प्रयोग करके भैरव को उसी प्रकार मोहाच्छन्न कर दिया, जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने बाणासुर विजय के अवसर पर भगवान शंकर को मोहित कर दिया था। राजन् ! उस अस्त्र के प्रभाव से अनिरुद्ध के देखते–देखते भैरव रणभूमि में गिर पड़े और जंभाई लेते हुए निद्रासुख का आस्वादन करने लगे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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