गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 15
नन्द ! अब अपने पुत्र के नाम सावधानी के साथ सुनो- ये सभी नाम तत्काल प्राणिमात्र को पावन करने वाले तथा चराचर समस्त जगत के लिये परम कल्याणकारी है। ‘क’ का अर्थ है- कमलाकांत; ‘ऋ’ कार का अर्थ है- राम; ‘ष’ अक्षर षड़विध ऐश्वर्य के स्वामी श्वेत द्वीप निवासी भगवान विष्णु का वाचक है। ‘ण’ नरसिंह का प्रतीक है और ‘अकार’ अक्षर अग्निभुक (अग्निरूप से हविष्य के भोक्ता अथवा अग्नि देव के रक्षक) का वाचक है तथा दोनों विसर्ग रूप बिन्दु (:) नर-नारायण के बोधक हैं। ये छहों पूर्ण तत्त्व जिस महामंत्र रूप परिपूर्णतम शब्द में लीन हैं, वह इसी व्युत्पत्ति के कारण ‘कृष्ण’ कहा गया है। अत: इस बालक का एक नाम ‘कृष्ण’ अंग कांति को प्राप्त हुआ है, इस कारण से यह नन्दनन्दन ‘कृष्ण’ नाम से विख्यात होगा।[1] इनका एक नाम ‘वासुदेव’ भी है। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है- ‘वसु’ नाम है इन्द्रियों का। इनका देवता है-चित्त। उस चित्त में स्थित रहकर जो चेष्टाशील है, उन अंतर्यामी भगवान को ‘वासुदेव’ कहते हैं। वृषभानु की पुत्री राधा जो कीर्ति के भवन में प्रकट हुई हैं, उनके ये साक्षात प्राणनाथ बनेंगे; अत: इनका एक नाम ‘राधापति’ भी है। जो साक्षात परिपूर्णतम स्वयं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र हैं, असंख्य ब्रह्माण्ड जिनके अधीन हैं और जो गोलोकधाम में विराजते हैं, वे ही परम प्रभु तुम्हारे यहाँ बालकरूप से प्रकट हुए हैं। पृथ्वी का भार उतारना, कंस आदि दुष्टों का संहार करना और भक्तों की रक्षा करना- ये ही इनके अवतार के उद्देश्य हैं। भरतवंशोद्भव नन्द! इनके नामों का अंत नहीं है। वे सब नाम वेदों में गूढ़रूप से कहे गये हैं। इनकी लीलाओं के कारण भी उन-उन कर्मों के लेकर आश्चर्य नहीं करना चाहिये। तुम्हारा अहोभाग्य है; क्योंकि जो साक्षात परिपूर्णतम परात्पर श्री पुरुषोत्तम प्रभु हैं, वे तुम्हारे घर पुत्र के रूप में शोभा पा रहे हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सद्य: प्राणिपवित्राणि जगतां मंगलानि च। ककार: कमलाकान्त ॠकारो राम इत्यिपि ।।
षकार: षड्गुणपति: श्वेगतद्वीपनिवासकृत्। णकारो नरसिंहोऽयमकारो ह्यक्षरोऽग्निभुक् ।।
विसर्गौ च तथा ह्येतौ नरनारायणावृषी। सम्प्रनलीनाश्च षट् पूर्णा यस्मिञ्छब्दे महामनौ ।।
परिपूर्णतमे साक्षात् तेन कृष्ण : प्रकीर्तित:। शुक्लो रक्तस्तथा पीतो वर्णोऽस्याभनुयुगं धृत: ।।
द्वापरान्ते कलेरादौ बालोऽयं कृष्णतां गत:। तस्मामत् कृष्ण् इति ख्या तो नाम्नायं नन्दनन्दन: ।-(गर्ग0, गोलोक0 15। 28-32)
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