गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 11
शीतल, मन्द, सुगन्ध वायु बहने लगी। जनपद और ग्राम सुख-सुविधा से सम्पन्न हो गये। बड़े-बड़े नगर तो मंगल के धाम बन गये। देवता, ब्रह्मण, पर्वत, वृक्ष और गौएँ- सभी सुख-सामग्री से परिपूर्ण हो गये। देवताओं की दुन्दुभियाँ बज उठी। साथ ही जय-जयकार की ध्वनि सब ओर व्याप्त हो गयी। महाराज ! जहाँ-तहाँ सब जगह सबका परम मंगल हो गया। गायन कला में निपुण विद्याधर, गन्धर्व, सिद्ध, किन्नर तथा चारण गीत गाने लगे। देवता लोग स्तोत्र पढ़कर उन परम पुरुष का स्तवन करने लगे। देवलोक में गन्धर्व तथा विद्याधरियाँ आनन्दमग्न होकर नाचने लगी। मुख्य-मुख्य देवता पारिजात, मन्दार तथा मालती के मनोरम फूल बरसाने लगे और मेघ गर्जना करते हुए जल की वृष्टि करने लगे। भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, रोहिणी नक्षत्र, हर्षण योग तथा वृष लग्न में अष्टमी तिथि को आधी रात के समय चन्द्रोदय काल में, जबकि जगत में अन्धकार छा रहा था, वसुदेव मन्दिर में देवकी के गर्भ से साक्षात श्री हरि प्रकट हुए-ठीक उसी तरह, जैसे अरणिकाष्ठ से अग्नि का आविर्भाव होता है। कण्ठ में प्रकाशमान स्वच्छ एवं विचित्र मुक्ताहार, वक्ष पर शोभा प्रभा समन्वित सुन्दर कौस्तुभ मणि तथा रत्नों की माला, चरणों में नूपुर तथा बाहों में बाजूबन्द धारण किये भगवान मण्डलाकार प्रभापुंज से उद्भासित हो रहे थे। मस्तक पर किरीट तथा कानों में कुण्डल युगल बालरवि के सदृश उद्यीप्त हो रहे थे। कलाइयों में प्रज्वलित अग्नि के समान कांतिमान अद्भुत कंकण हिल रहे थे। कटिकी करधनी में जो डोर या जंजीर लगी थी, उसकी प्रभा विद्युत के समान सब ओर व्याप्त हो रही थी। कण्ठ देश में कमलों की माला शोभा पाती थी, जिसके ऊपर मधु लोलुप मधुकर मँडरा रहे थे। उनके श्री अंगों पर जो दिव्य पीत वस्त्र था, वह नूतन (तपाये हुए) जाम्बूनद (सुवर्ण) की शोभा को तिरस्कृत कर रहा था। श्यामसुन्दर विग्रह पर सुशोभित वह पीताम्बर विद्युद्विलास से विलसित नीलमेघ के सौभाग्यपूर्ण सौन्दर्य को छीने लेता था। मुख के ऊपर शिरोदेश में काले काले घुँघराले केश शोभा पाते थे। मुखचन्द्र की चंचल रश्मियाँ वहाँ का सम्पूर्ण अन्धकार दूर किये देती थी। वह परम सुन्दर शुभद आनन प्रफुल्ल इन्दीवर सदृश युगल नेत्रों से सुशोभित था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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