गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 24
कौरवों के कुल में परीक्षित नाम से विख्यात राजा होगा। उसका अत्यन्त तेजस्वी पुत्र जनमेजय नाम से प्रसिद्ध होगा। वह अपने पिता के शत्रु तक्षक नाग के कुल का नाशक सर्पयज्ञ करेगा, इसमें संशय नहीं हैं। उसको भी सारी यज्ञ सामग्री उद्धव के द्वारा ही प्राप्त होगी। उस समय दिव्य श्रीमद्भागवत पुराण की कथा होगा, उज्जवल (सात्तिवक) प्रकृति के लोग समवेत होंगे, इसमें संशय नहीं हैं। महान भगवद्भक्तों में उत्तम ब्रह्मर्षि (आस्तीक) के प्रसाद से जनमेजय द्वारा होने वाले सर्पयज्ञ की समाप्ति हो जायेगी। महाराज जनमेजय यज्ञ-संस्कार कराने वाले ब्राह्यणों का पूजन करके उन्हें सौ ग्राम अग्रहार के रूप में देंगे। तदनन्तर आचार्य प्रवर श्रीप्रसादजी की आज्ञा से राजा जनमेजय शूकरक्षेत्र (सोरों) में जायँगे और वहाँ एक मास ठहरेंगे। उस तीर्थ में अनेक प्रकार के दान-गौ, बड़े-बड़े़ हाथी, घोडे़, रत्न, वस्त्र तथा इच्छानुसार भोजन ब्राह्मणों को देकर वे अपने आचार्य के साथ उस स्थान से लौटकर गंगा तट के तीर्थ स्थानों का दर्शन करते हए सत्पुरुषों से घिरे शयाननगर में आकर सेवकों सहित डेरा डालेंगे। वहाँ श्रीगुरु की आज्ञा से सामग्री और साधन जुटाकर अश्वमेध यज्ञ करेंगे और सर्वजेता (दिग्विजयी) होगे। इस प्रकार एकछत्र राज्य के स्वामी होकर श्रीगुरुदेव की शरण ले शयान नगर से पूर्व दिशा में रमणीय गंगा के तट पर अत्यन्त एकान्तवासी के रूप में तीर्थ सेवन करेंगे। वहाँ धार्मिकों के समाज में बड़े आनन्द के साथ भवरोग विनाशिनी भागवत कथा होगी। उस पूर्ण समाज में एक तुम भी रहोगे और भागवत की कथा सुनोगे। उसे सुनकर तुम्हें निर्मल पद की प्राप्ति होगी। तुमने मेरे लिये तपस्या की है, इसलिये तुम्हारे सामने मैंने इस रहस्य को प्रकाशित किया है। इस प्रकार माण्डूक देव को वर सेवकों सहित बलरामजी वहाँ से चले गये। शुद्ध शयाननगर से ईशान कोण मे गंगा तट पर स्थित एक रमणीय स्थान है, जो कण्टक तीर्थ से उत्तर है और पुष्पवती नदी से दक्षिण दिशा में विद्यमान है। उसका विस्तार एक कोस में हैं। वहीं ठहरकर संकर्षणदेव दान पुण्य में लग गये। बलरामजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ वहाँ दस हजार घोड़ों सौ रथों, एक हजार हाथियों, और दस हजार गौओं का दान किया। वहाँ समस्त देवता तथा तपस्या के धनी ऋषि मुनि आये। उन सबने बडे़ आदर से संकर्षणदेव का पूजन किया। फिर इस प्रकार स्तुति की- 'प्रभो ! आप कोलेशदैत्य के हन्ता कथा गर्दभासुर (धेनुक) का विनाश करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। हलायुध ! आपको प्रणाम है। मुसलास्त्र धारण करने वाले आपको नमस्कार है। सौन्दर्य स्वरूप आपको प्रणाम है। तालचिह्मित ध्वजा धारण करने वाले आपको बारंबार नमस्कार है।[1] उन सबके द्वारा की गयी इस स्तुति को सुनकर संकर्षण बोले- 'आप सब लोगों को जो अभीष्ट हो, वह वर मुझसे माँगिये'।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नम: कोलेशघाताय खरासुरविघातिने। हलायुध नमस्तेऽस्तु मुसलास्त्राय ते नम: ।।
नम: सौन्दर्यरूपाय तालांकाय नमो नम: ।।-(गर्ग0, मथुरा0 24। 99)
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