गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 17
बत्तीस सखियों ने कहा- अपने मित्र को प्रीति से, शत्रु को नीति से, लोभी को धन से, ब्राह्मण को आदर से, गुरु को बारंबार प्रणाम से तथा रसिक को रस से वश में किया जाता है, परंतु निर्मोही को कोई कैसे वश में कर सकता है ? श्रुतिरूपा गोपियाँ- जो जाग्रत आदि अवस्था में व्याप्त होकर भी उनसे परे हैं तथा इस जगत के हेतु होते हुए भी वास्तव में अहेतु हैं, ये समस्त गुण जिनसे ही प्रेरित होकर अपने-अपने विषयों की ओर प्रवाहित होते है, तथा जैसे आग से निकली हुई चिनगारियाँ पुन: उसमें प्रविष्ट नहीं होती, उसी प्रकार महत्तत्व, इन्द्रिय समुदाय जिनमें प्रवेश नहीं पाते, उन परमात्मा को नमस्कार है। ऋषिरूपा गोपियों ने कहा- बलवानों में भी अत्यन्त बलिष्ठ यह काल जिन पर अपना शासन चलाने में समर्थ नहीं है, माया भी जिनको वशीभूत नहीं कर पाती तथा वेद भी जिन्हें अपनी विधिवाक्यों का विषय नहीं बना पाता, उस अमृतस्वरूप, परम प्रशान्त, शुद्ध परात्पर पूर्णब्रह्म की हम शरण लेती हैं। देवांग्नास्वरूपा गोपियाँ बोलीं - जिन परमेश्वर के अंशांश, अंश कला, आवेश तथा पूर्ण आदि अवतार होते हैं, और जिनसे ही इस जगत की सृष्टि, पालन एवं संहार होते है, उन पूर्ण से भी परे परिपूर्णतम श्रीकृष्ण को हम प्रणाम करती हैं। यज्ञसीतारूपा गोपियों ने कहा- ये श्याम-सुन्दर निकुंज लतिकाओं के लिये कुसुमाकर (वसन्त) हैं, श्रीराधा के हृदय तथा कण्ठ को विभूषित करने वाले हार हैं, श्रीरासमण्डल के अधिपति हैं, व्रजमण्डल के ईश्वर हैं तथासतस्त ब्रह्मण्डों के महीमण्डल का परिपालन करने वाले हैं। रमा वैकुण्ठवासिनी गोपियाँ बोलीं- जिन्होंने समस्त गोपीयूथ को अलंकृत किया, अपनी चरण-रज से वृन्दावन तथा गिरिराज गोवर्धन को विभूषित किया तथा जो सम्पूर्ण लोगों के अभ्युदय के लिये इस भूमण्डल पर आविर्भूत हुए, उन नागराज के समान परिपुष्ट भुजा वाले अनन्त लीला-विलासशाली श्रीश्यामसुन्दर का हम भजन करती हैं। श्वेतद्वीप की सखियों ने कहा- जैसे बालक कुकुरमुत्ते को बिना श्रम के उठा लेता है और जैसे गजराज अपनी सूँड से अनायास ही कमल को उठा लेता है, उसी प्रकार जिन्होंने खिलवाड़ में ही पर्वत को एक हाथ उठाकर अद्भुत शोभा प्राप्त की, वे कृपानिधान श्रीव्रजराजनन्दन हमें कभी विस्मृत नहीं होते। उर्ध्ववैकुण्ठवासिनी गोपियाँ बोलीं - हमारी श्यामवर्णमयी आँखे सारे जगत को श्याम मय ही देखती हैं, इन्हें द्वैत तो दीखता ही नहीं, फिर ये योग का सेवन क्या करेंगी ? लोकाचलवासिनी गोपियों ने कहा- स्नेह का पाश दृढ़ होता है। वह कभी टूटने-कटने वाला नहीं है। हम उसे नहीं काट सकतीं श्रीहरि के सिवा दूसरा कोई ऐसा नहीं कर सकता। एकमात्र वे ही ऐसे हैं, जो नागपाश को काटने वाले गरुड़ की भाँति इस स्नेहपाश को काटकर मथुरा चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |