गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 15
उद्धव ने कहा- श्रीराधे ! श्रीकृष्ण सदा परिपूर्णतम भगवान हैं और आप सदा परिपूर्णतमा भगवती हैं। श्रीकृष्णचन्द्र नित्यलीलापराण हैं और आप नित्यलीला का सम्पादन करने वाली नित्यलीलावती हैं। श्रीकृष्ण भूमा हैं और आप इन्दिरा है। श्रीकृष्ण नित्य सनातन ब्रह्मा हैं और आप सदा उनकी शक्ति सरस्वती हैं। श्रीकृष्ण शिव हैं और आप कल्याणस्वरूपा शिवा हैं। भगवान श्रीकृष्ण विष्णु हैं और आप निश्चय ही उनकी पराशक्ति वैष्णवी हैं। आदिदेवता श्रीहरि कोमारसर्गी- सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार हैं तथा आप ज्ञानमयी शुभा स्मृति हैं। श्रीहरि प्रलयकाल के जल में क्रीड़ा करने वाले यज्ञ वराह हैं और आप ही वसुधा हैं। श्रीहरि मन से जब देवर्षिवर्य नारद बनते हैं, तब साक्षात आप ही उनके हाथी की वीणा होती हैं। श्रीहरि जब धर्मनन्दन नर और नारायण होते हैं, तब आप ही जगत में शांति स्थापित करने वाली साक्षात शान्तिरूपिणी होती हैं। श्रीकृष्ण ही साक्षात महाप्रभु कपिल हैं और आप ही सिद्धसेविता सिद्धि। राधे ! श्रीकृष्ण महामुनीश्वर दत्तात्रेय हैं और आप ही नित्यज्ञानमयी सिद्धि। श्रीहरि यज्ञ हैं और आप दक्षिणा। वे उरूक्रम वामन हैं तो आप सदा उनकी शक्ति जयन्ती हैं। श्रीहरि जब समस्त राजाओं के अधिराज पृथु होते हैं, तब आप उन महाराज की पटरानी अर्चिर्देवी के रूप में प्रकट होती हैं। शंखासुर का वध करने के लिये जब श्रीहरि मत्स्यावतार ग्रहण किया, तब आप श्रुतिरूपा हुई। मन्दराचल द्वारा समुद्र मन्थन के समय श्रीहरि कच्छप रूप में प्रकट हुए, तब आप वासुकि नाग में शुभदायिनी नेती शक्ति रूप से प्रकट हुई। शुभे ! परमेश्वर श्रीहरि जब पीडाहारी धन्वन्तरि के रूप में आविर्भूत हुए, तब आप दिव्य सुधामयी ओषधि के रूप में दृष्टिगोचर हुईं। श्रीकृष्णचन्द्र जब मोहिनी रूप में सामने आये, तब आप उनके भीतर विश्व-विमोहिनी मोहिनी के रूप में अभिव्यक्त हुईं। श्रीहरि जब नृसिंह रूप धारण करके नृसिंहलीला करने लगे, तब आप निज-भक्तवत्सला लीला के रूप में आयीं। जब श्रीकृष्ण ने वामन रूप धारण किया, तब आप अपने भक्तजनों द्वारा कीर्तित कीर्तिरूपिणी हुईं। जब श्रीहरि भृगुनन्दन परशुराम का रूप धारण करके सामने आये, तब आप ही उनके कुठारी की धारा बनीं। श्रीकृष्णचन्द्र जब रघुकुलचन्द्र श्रीराम हुए, तब आप ही उनकी धर्मपत्नी जनकनन्दिनी सीता थीं। जब शार्ग्धन्वा श्रीहरि बादरायणमुनि व्यास के रूप में प्रकट होते हैं, तब आप वेदान्ततत्व को प्रकट करने वाली देववाणी के रूप में आविर्भूत होती हैं। वृष्णि-कुल-तिलक माधव ही जब संकर्षण रूप होते हैं, तब आप ही ब्रह्माभाव रेतवी के रूप में उनकी सेवा में विराजमान होती हैं। श्रीहरि जब असुरों को मोहित करने वाले बुद्ध के रूप में प्रकट होते हैं, तब आप विश्वजनमोहिनी बुद्धि होती हैं। जब श्रीहरि धर्मपालक कल्कि के रूप में प्रकट होंगे, तब आप कृतिरूपिणी होंगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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