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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.भगवान शंकर का विषपान
जगत में नीलकण्ठ की बड़ी महिमा है। इस दुनिया में भी समझदार लोगों को जहर पीना पड़ता है। जो नासमझ हैं उनको तो कुछ नहीं करना पड़ता। गृहस्थियों की बातें सुनते हैं तो आश्चर्य होता रहता है। लोग कहते हैं- इस घर में मैं ही काम करता हूँ, सब मुझे ही सहना पड़ता है, सारा अपमान मुझे ही सहन करना पड़ता है। सारी कटुता मुझे ही पचानी पड़ती है। यहाँ देखो, विष पान की क्रिया के द्वारा भगवान शिव हमें क्या सिखाते हैं? यही कि जीवन का सारा जहर, सारी कटुता को तुम पी लो क्योंकि तुममे शक्ति है। और दूसरी बात, उस कटुता को अन्दर मत जाने दो। कई बार लोग जीवन के कटु अनुभवों को प्राप्त करके उन्हें पी तो जाते हैं, पर वे स्वयं बहुत जहरीले और कड़वे बन जाते हैं। या फिर उस कटुता को उगलते रहते हैं। भगवान शिव जी यहाँ सिखा रहे हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए। स्वंय भी कटु स्वभाव वाले मत बनो और दूसरों के ऊपर भी कड़वाहट मत उगलो। शान्ति से रहो। अन्दर-ही-अन्दर जलते मत रहना। कुछ लोग सहन तो करते हैं, लेकिन भीतर-ही-भीतर जलते रहते है, कुढ़ते रहते हैं। जीवन में समझदार लोगों को ही झुकना पड़ता है। समझदार लोगों को ही जहर पीना पड़ता है। जैसे, घर में एक बड़ा और एक छोटा ऐसे दो लड़के हों, और यदि बड़ा लड़का झगड़ा करता है, कोई चीज छोटे से छीनता है, तो उससे कहा जाता है, “अरे तुम बड़े हो, समझदार हो, दे दो उसको।” ऐसा ही कहते हैं न? बड़े लड़के से ही समझदारी की अपेक्षा की जाती है। छोटे बच्चे से हम समझदारी की अपेक्षा नहीं करते। बच्चों को तो हम बड़ा उपदेश देते रहते हैं, लेकिन अपने ऊपर आता है तो बात नहीं समझते हैं। यही बात नीलकण्ठ भगवान हमें बताते हैं। विष पी लो, लेकिन स्वयं जहरीले मत बनो, मर मत जाओ, दूसरों को भी न मारो, उसे अपना आभूषण बनाकर धारण कर लो! अब शंकरजी ने विष पी लिया तो थोड़ी शान्ति हो गई। जहर पीेते समय जो थोड़ा बहुत जहर इधर-उधर गिर गया था उसे वहाँ जो साँप थे, बिच्छू थे उन्होंने पी लिया। इसलिए वे सब जहरीले हो गए। फिर से मन्थन शुरू हुआ तो उसमें से कामधेनु निकली। कामधेनु समस्त यज्ञसामग्री प्रदान करने वाली होती है। अतः ब्राह्मणों ने और ऋषियों ने कहा कि हमें यज्ञ-याग बहुत करने पड़ते हैं, और वैसे भी पहली चीज पर ब्राह्मणों का ही अधिकार होता है। इसलिए इसे हम ले लेते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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