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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.भगवान हरि के द्वारा गजेन्द्र की मुक्ति
भला इससे बढ़कर और कौन सी बात हो सकती है? लेकिन यह जीव कोई भगवान से कम है क्या? भगवान कहते हैं, ”मैं तुम्हारा उद्धार करने के लिये तत्पर हूँ।“ तो जीव कहता है- करके देखो। शर्त लगा लो! देखता हूँ आप मेरा उद्धार कैसे करते हैं। प्रायः यही देखा जाता है कि जब कोई साधारण-सा ही नियम बना लेता है कि ‘ब्रह्मार्पण’ करके तब खाना खाऊँगा, तब होता यही है कि पहला कौर मुख में चला जाता है तब ध्यान आता है कि भोजन के पूर्व भगवान का स्मरण तो किया ही नहीं। यह मन ऐसा है कि भगवान का स्मरण करने नहीं देता। या फिर, कभी हम यही निश्चय कर लें कि सुबह उठते ही सबसे पहले भगवान का स्मरण करेंगे, तब भी अगले दिन देख लो कि क्या यह मन वैसा करने देता है? जैसे ही आँख खुलती है, वह (मन) कहता है थोड़ी देर और सो जा। हमारा मन हमें भगवान का नाम लेने नहीं देता। यह करके देखने की बात है। थोड़ा-सा करके देखा, प्रयत्न करो। इस प्रकार गजेन्द्र मोक्ष का यह सुन्दर प्रसंग यहाँ समाप्त होता है। अब आगे दूसरे मन्वन्तर की कथा आती है। पाँचवें मन्वन्तर में भगवान ने वैकुण्ठ नामक अवतार ग्रहण किया। उसका संक्षिप्त वर्णन करके श्री शुकदेव जी आगे कहते हैं - |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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