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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.भगवान हरि के द्वारा गजेन्द्र की मुक्ति
अर्थात इस संसार में आते हैं सुख पाने के लिये। नहीं जानते कि यहाँ काल रूपी मगरमच्छ (चाहे उसे कालरूपी कहो या कामरूपी) बैठा हुआ है। वह हमारी प्रतीक्षा कर रहा है, आते ही हमारा पैर पकड़ लेने के लिए उद्यत है, तैयार बैठा है। देखो, काल भी पहले आदमी के पैर को ही पकड़ लेता है। आदमी का जब मरण समय आता है तब सबसे पहले उसके पैर ही ठंडे पड़ने लगते हैं, क्योंकि काल पहले पैर को पकड़ लेता है। तब भी, अन्त काल में भी हम लोग इस डाक्टर को बुलाओ, उस डाक्टर को बुलाओ- यही कहते रहते हैं। आॅक्सीजन ले-ले कर कब तक जीते रहेंगे? लोगों को लगता है आॅक्सीजन लेने से जी रहे हैं। अरे! आॅक्सीजन से जीते होते तो कोई कभी मरता ही क्यों? आॅक्सीजन तो बहुत उपलब्ध है। जब तक कोई जीता है, तब तक उसे आॅक्सीजन आदि देते रहते हैं, मरने के बाद आॅक्सीजन आदि भी कुछ काम नहीं करते हैं। उन्हें भी हटा देना पड़ता है। यह गजेन्द्र मोक्ष कोई सामान्य जरा से बन्धन से मुक्ति पाने की बात नहीं है, यह तो संसार बन्धन से मुक्ति की बात है। और वास्तव में यह संसार बन्धन तभी छूटता है जब हम भगवान की शरण में जाते हैं। भगवान जब प्रकट हुये तो गजेन्द्र ने उनकी स्तुति की। भगवान ने तो यहाँ तक कह दिया कि तुमने जो स्तुति की उस स्तुति के द्वारा जो मेरी पूजा, उपासना करते हैं, मैं उन पर प्रसन्न हो जाता हूँ।
देखा, इस संदर्भ में ध्यान में रखने की बात यह है कि- ‘एतावान एव परो लाभः अन्ते नारायण स्मृतिः’ जीवन का सबसे बड़ा लाभ यही है कि अन्त में भगवान की स्मृति हो जाये। यहाँ भगवान कहते हैं कि जो लोग प्रति नित्य प्राय: उठकर इस स्तुति का पाठ करते हैं, अन्त काल में उन्हें सद्बुद्धि मैं देता हूँ। बताओ और क्या चाहिये? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 8.4.25
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