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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.भगवान हरि के द्वारा गजेन्द्र की मुक्ति
सर्वशक्तिमान् भगवान ही मुझे बचा सकते हैं। मुझे दूसरा कोई बचा नहीं सकता। किसी में ऐसी शक्ति नहीं है। अतः मुझे उस भगवान की ही शरण में जाना चाहिए। एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि गजेन्द्र भगवान की शरण में जाने की जगह मगरमच्छ की शरण में क्यों नहीं गया? उसे अपने आप को छुड़ाना ही तो था न? यदि वह मगरमच्छ से कहता कि मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ, तुम मुझे छोड़ दो, तो मगर उसे छोड़ देता। बोले, बात यह है कि मगरमच्छ उसे छोड़ ही देता, इसका कोई निश्चय तो था नहीं। दूसरी बात, मगरमच्छ भी एक जीव ही है। जीव की शरण में क्या जाना? उससे क्या प्राप्त हो जाता? ज्यादा-से-ज्यादा वह गजराज को छोड़ देता। वह ग्राह उसे मुक्त तो नहीं कर सकता था, मोक्ष तो नहीं दे सकता था। यहाँ जरा गजेन्द्र की मानसिकता देखो। हरि को बुलाने का निमित्त वैसे तो यही था कि वे उसे ग्राह से छुड़ा दें, लेकिन बाद में गजेन्द्र को लगने लगा कि भगवान मुझे केवल ग्राह से ही नहीं, संसार से भी छुड़ा दें। वह भगवान को पुकारने लगा। संत शिरोमणि सूरदास जी ने एक सुन्दर पद लिखा है-
हे भगवान! मैंने अपनी पूरी शक्ति लगाकर देख ली, लेकिन मेरी एक नहीं चली। कहते हैं - ‘समाप्ता मम युक्तयः’ मेरी जितनी युक्तियाँ थीं, मैंने उन सबका उपयोग करके देख लिया। ‘अब तो जीवन हारे’ अब मुझसे सहा नहीं जाता। मैं अपने आपको बचा भी नहीं सकता। ‘सूर कहे श्याम शरण है तिहारे’। ऐसा कहा जाता है कि गजेन्द्र को अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो आई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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