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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.भगवान हरि के द्वारा गजेन्द्र की मुक्ति
एक दिन की बात है, गजराज अपनी मस्ती में जंगल में कहीं जा रहा था। चलते-चलते पेड़ों को उखाड़ कर फेंकता जा रहा था, क्योंकि उसे अपने बल का बड़ा अभिमान था। गजराज ने जब विशाल सरोवर देखा, तो वह नहाने के लिए उसमें उतरा। वैसे भी उस दिन गरमी लग रही थी। उसके साथियों को प्यास भी लग रही थी। उस सागर जैसे विशाल सरोवर में दैववशात् एक बड़ा विशालकाय, भयंकर मगरमच्छ रहता था। हाथी जमीन पर रहने वाला प्राणी है, अतः पानी में उसकी शक्ति अधिक नहीं होती। मगरमच्छ तो पानी में ही रहने वाला प्राणी है। उसने गजेन्द्र के पाँव को पकड़ लिया और उसे नीचे की ओर खींचने लगा। गजेन्द्र को अपने बल पर बहुत भरोसा था। उसने पूरी शक्ति लगाकर अपने आपको बचाने का प्रयत्न किया लेकिन बचा नहीं पाया। उसके साथ जो दूसरे हाथी और हथिनियाँ थीं, उन सब ने भी उसे पकड़ कर खींचने का प्रयत्न किया, लेकिन उससे भी कोई लाभ नहीं हुआ। तब वह सोचने लगा कि -
ये लोग भी मुझे नहीं बचा सकते हैं। देखो, हमें भी पहले तो यही लगता है कि हम अपने बल से ही सब कर लेंगे। गजेन्द्र को भी लगा कि अपने बल से ही अपने आपको मुक्त कर लेगा। परन्तु जब नहीं कर पाया तब उसे लगा कि रिश्ते-नाते वाले या उसके स्वजन उसे छुड़ा लेंगे। लेकिन वे सब भी नहीं छुड़ा पाये। एक जीव अपनी रक्षा के लिए दूसरे जीव के पास जाए तो उससे क्या लाभ होगा? अन्ततः वह समझ गया कि दूसरे अल्पशक्ति वालों के पास जाने से कोई लाभ नहीं होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 8.2.32
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