गर्ग संहिता
गर्ग संहिता-माहात्म्य : अध्याय 4
समस्त श्रोताओं ने कहा- हे जगन्नाथ ! हम लोगों का अपराध क्षमा कीजिये ! श्रीनाथ ! राजा को सुपुत्र तथा हम लोगों को अपने चरणों की भक्ति प्रदान कीजिये। महादेवजी ने कहा – देवि ! भक्तवत्सल भगवान इस प्रकार अपनी स्तुति सुनकर उन सभी प्रणतजनों के प्रतिमेघ के समान गम्भीर वाणी सेे बोले। श्रीभगवान ने कहा- मुनिवर शाण्डिल्य ! तुम राजा तथा सभी लोगों के साथ मेरी बात सुनो- ‘तुम लोगों का कथन सफल होगा ।’ ब्रह्मन ! इस संहिता के रचयिता गर्गमुनि हैं, उसी कारण यह ‘गर्गसंहिता’ नाम से प्रसिद्ध है। यह सम्पूर्ण दोषों को हरने वाली, पुण्यस्वरूपा और चतुर्वर्ग- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के फल को देने वाली है। कलियुग में जो-जो मनुष्य जिस-जिस मनोरथ की अभिलाषा करते हैं, श्रीगर्गाचार्य की यह गर्गसंहिता सभी की उन-उन कामनाओं को पूर्ण करती है’। शिवजी ने कहा- देवि ! ऐसा कहकर माधव राधा के साथ अन्तर्धान हो गये। उस समय शाण्डिल्य मुनि को राजा आदि सभी श्रोताओं को परम आन्नद प्राप्त हुआ। प्रिये ! तदनन्तर मुनिवर शाण्डिल्य ने दक्षिणा में प्राप्त हुए धन को मथुरावासी ब्राह्मणों में बांट दिया। फिर राजा को आश्वासन देकर वे सभी अन्तर्हित हो गये। तत्पश्चात रानी ने राजा के समागम से सुन्दर गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्म के फलस्वरूप गुणवान पुत्र उत्पन्न हुआ। उस समय राजा को महान हर्ष प्राप्त हुआ। उन्होंने कुमार के जन्म के उपलक्ष में ब्राह्मणों को गौ, पृथ्वी, सुवर्ण वस्त्र, हाथी, घोड़े आदि दान दिये और ज्यौतिषियों से परामर्श करके अपने पुत्र का ‘सुबाहु’ नाम रखा। इस प्रकार नृपश्रेष्ठ प्रतिबाहु स्फल मनोरथ हो गये। राजा प्रतिबाहु ने श्रीगर्गसंहिता का श्रवण करके इस लोक में सम्पूर्ण सुखों का उपभोग किया और अन्तकाल आने पर वे गोलोक धाम को चले गये, जहाँ पहुँचना योंगियों के लिये भी दुर्लभ है। श्रीगर्गसंहिता स्त्री, पुत्र, धन, सवारी, कीर्ति, घर, राज्य, सुख और मोक्ष्ा प्रदान करने वाली है। मुनीश्वरों ! इस प्रकार भगवान शंकर ने पार्वती देवी से सारी कथा कहकर जब विराम लिया, तब पार्वती ने पुन: उनसे कहा। पार्वती जी बोली- नाथ ! जिस में माधव अद्भुत चरित्र सुनने को मिलता है, उस श्रीगर्गसंहिता की कथा मुझे बतलाइये। यह सुनकर भगवान शंकर ने हष पूर्वक अपनी प्रिया पार्वती से गर्गसंहिता की सारी कथा कह सुनायी। पुन: साक्षात शंकर ने आगे कहा- ‘सर्वमंगले ! तुम मेरी यह बात सुनो- गंगा तट से अर्ध योजन (चार मील) की दूरी पर बिल्वकेश वन में जो सिद्धपीठ है, वहाँ कलयुग आने पर गोकुलवासी वैष्णवों के मुख से श्रीमद्भागवत आदि संहिताओं की कथा तुम्हें बारंबार सुनने को मिलेगी’। सूत जी कहते हैं- शौनक ! इस प्रकार महादेव जी के मुख से इस महान अद्भुत इतिहास को सुनकर भगवान की वैष्णवीमाया पार्वती परम प्रसन्न हुईं। मुने ! उन्होंने बारंबार श्री हरि की कथा सुनने की इच्छा से कलियुग के प्रारम्भ में अपने को बिल्वकेश वन में प्रकट करने का निश्चय किया। इसी कारण वे लक्ष्मी का रूप धारण करके ‘सर्वमंगला’ नाम से वहाँ गंगा के दक्षिण तट पर प्रकट होंगी। मुने ! श्रीगर्गसंहिता का जो माहात्म्य मैंने कहा है, इसे जो सुनता है अथवा पढ़ता है, वह पाप और दु:खों से मुक्त हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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