गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 50
अपने भाई विदुर के इस प्रकार समझाने पर बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र ने कौरवों से यह देश कालोचित बात कही । धृतराष्ट्र बोले– तुम लोग श्रीकृष्ण के निकट जाकर घोड़ा लौटा दो। देवाधिदेव श्रीहरि के सामने युद्ध करना तुम्हारे बलबूते के बाहर है। श्रीहरि यादवों की सहायता के लिए कुपित होकर आए हैं, तुम धीरे से उनके निकट जाकर उन्हें प्रसन्न करो । कौरवेंद्र का ऐसा आदेश सुनकर समस्त कौरव भयभीत हो गए। वे गंध, अक्षत सहित द्विव्य वस्त्र और नाना प्रकार के रत्न आदि विविध उपचार लेकर बलराम और श्रीकृष्ण के पवित्र नामों का कीर्तन करते हुए सब के सब श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ पैदल ही गए। कौरवों को आया देख यादव क्रोध से भर गए और उन्होंने शीघ्र ही युद्ध के लिए नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्र ले लिए। तब समस्त कौरवों ने उनसे कहा हम लोग युद्ध के लिए नहीं आए हैं। हम भगवान श्रीकृष्ण का शुभ दर्शन करेंगे, जो समस्त दु:खों का नाश करने वाला है। उनकी यह बात सुनकर यादवों को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कौरवों की वह सारी चेष्टा भगवान श्रीकृष्ण को बताई। नरेश्वर ! तब श्रीकृष्ण की आज्ञा पाकर वह श्रेष्ठ यादव वीरों ने निहत्थे आए हुए कौरवों को प्रेमपूर्वक बुलाया। श्रीकृष्ण के बुलाने पर वे उनके पास गए। उन सबके मुख लज्जा से नीचे को झुके हुए थे। उन्होंने पृथक–पृथक प्रणाम करके कहा । सबसे पहले आचार्य द्रोण बोले– जगदीश्वर श्रीकृष्ण ! भद्र ! मेरी रक्षा कीजिए। आपकी माया से मोहित हुए इन कौरवों को भी बचाइये ।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पूर्वं द्रोण उवाचाथ कृष्ण भद्र जगत्पते। रक्ष मां कौरवान् रक्ष मायया तव मोहितान्।। 32।।
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