गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 14
यह मेरा लाला कन्हैया व्रजवासियों का जीवन है, व्रज का धन है, इस कुल का दीपक है तथा अपनी बाल-लीला से सबके मन को मोह लेने वाला है। उसके लालन-पालन में मेरे इतने वर्षों के दिन एक क्षण की भाँति बीत गये। अहो ! आज नन्दनन्दन के बिना वही दिन एक कल्प के समान भारी हो गया है। जिस कन्हैया को ग्वाल-बालों के साथ बछडे़ चराने के लिये मैं गाँव की सीमा पर और नदी के किनारे भी नहीं जाने देती थी, हाय ! वही मथुरा चला गया ! ‘ओ मोहन !’– यों दूर से पुकारकर जो उसे गोद में लेते और लाड-प्यार करते थे, वे ही नन्दराज उसके बिना खेद और विषाद में डूबे रहते हैं। अहो ! एक दिन दही का भाँड फोड़ देने पर मुझ निर्मोहिनी ने उस बच्चे को रस्सी से बाँध दिया था। आज वह करतूत याद करके मैं शोक में डूब रही हूँ। यह आँगन, सारा सभामण्डप, मकान, सरोवर, गली, व्रज, महलों की छतें सब सूनी हो गयी हैं। मुकुन्द के बिना यह सारा जगत विष के तुल्य प्रतीत होता है। कन्हैया के बिना मेरे इस जीवन को धिक्कार है। नारदजी कहते हैं– राजन ! यशोदा और नन्द में उच्चकोटि के प्रेम का लक्षण प्रकट हुआ देख उद्धव अत्यन्त आश्चर्यचकित हो गये। उनका अपना सारा ज्ञानाभिमान गल गया । उद्धव बोले– अहो ! महाप्रभु नन्द और यशोदाजी ! मेरे शरीर में जितने रोम हैं, वे सब यदि जिह्वाएँ हो जायँ तो उन जिह्वाओं द्वारा भी मैं आप दोनों की महत्ता का वर्णन करने में समर्थ नहीं हूँ। आप दोनों ने साक्षात परिपूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के प्रति ऐसी प्रेमलक्षणा-भक्ति की है, जिसकी कहीं तुलना नहीं है। आप दोनों को जो सनातन प्रेमलक्षणाभक्ति प्राप्त हुई है, वह तीर्थाटन, तपस्या, दान, सांख्य और योग से भी सुलभ नहीं है। हे नन्द और हे व्रजेश्वरी यशोदे ! आप दोनों शोक न करें। ये दो पत्र आप लोग शीघ्र ही अपने हाथ में लें। इन पत्रों को निस्संदेह श्रीकृष्ण यदुपुरी में कुशलपूर्वक हैं। यादवों का महान कार्य सिद्ध करके बलराम सहित श्रीभगवान यहाँ भी थोडे़ ही समय में आयेंगे । तुम नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को परिपूर्णतम परमात्मा समझो। वे कंस आदि दैत्यों का वध और भक्तों की रक्षा करने के लिये ब्रह्माजी की प्रार्थना से आपके घर में अवतीर्ण हुए हैं। बलराम सहित श्रीहरि ने जन्मदान से ही अद्भुत लीला आरम्भ कर दी थी। पूतना के प्राणों का अपहरण, शकट का भंजन, तृणावर्त को मार गिराना, यमलार्जुन वृक्षों को तोड़ गिराना और अपने मुख में यशोदाजी को विश्वरूप का दर्शन करान आदि उनकी अलौकिक लीलाएँ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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