गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 14
वृन्दावन में बछडे़ चराते हुए उन प्रभावशाली भगवान ने गोपों के देखते-देखते बकासुर और वत्सासुर का वध किया, अघासुर को मारा, धेनुकासुर को कुचल डाला, कालियनाग को रौंद डाला, दावानल को पी लिया तथा तत्पश्चात् बलदेवजी ने प्रलम्बासुर का वध किया। आप सब लोगों के देखते हुए जैसे गजराज अपनी सूँड में कमल धारण करता है, उसी प्रकार श्रीहरि ने एक ही हाथ से लीलापूर्वक गोवर्धन पर्वत को उखाड़कर उठा लिया। उन जगदीश्वर ने शंखचूड़ से उसकी चूड़ामणि ले ली और अरिष्टासुर का वध करके केशी को भी काल के गाल में भेज दिया। व्योमासुर बड़ा भारी दैत्य था, किंतु भगवान ने उसे मुक्के से ही मसल डाला। महामते ! इस प्रकार मथुरा में भी उन्होंने विचित्र पराक्रम प्रकट किया। कंस का रजक बडा हींग हाँकता था, किंतु श्रीहरि ने एक ही हाथी की चोट से उसका काम तमाम कर दिया। सब लोगों के देखते-देखते कंस के प्रचण्ड धनुर्दण्ड को बीच से ही खण्डित कर दिया-ठीक उसी तरह, जैसे हाथी ईख के डंडे को तोड़ डालता है। कुवलयापीड़ नामक हाथी बल में दस हजार हाथियों की समानता करता था, किंतु भगवान ने उसकी सूँड पकड़कर उसे भूतल पर दे मारा। चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल को माधव ने मल्ल युद्ध करके भूपृष्ठ पर मार गिराया। मदमत्त दैत्य कंस एक लाख हाथियों के समान बलशाली था, परंतु उसे श्रीकृष्ण ने मंच से उठाकर भुजाओं के वेग से घुमाते हुए पृथ्वी पर उसी तरह पटक दिया, जैसे कोई बालक कमण्डलु को गिरा दे। फिर जैसे हाथी पर सिंह कूदे, उसी प्रकार वे कंस पर कूद पड़े। कंस के कंक आदि छोटे भाइयों का महाबली बलदेव ने मुद्रेर से ही तुरंत उसी प्रकार कचूमर निकाल दिया, जैसे किसी सिंह ने बहुत-से मृगों को मौत के घाट उतार दिया हो। अपने गुरु को दक्षिणा देने के लिये महासागर में कूदकर स्वयं श्रीहरि ने शंखरूपधारी पंचजन नामक असुर का संहार कर डाला। महानन्द ! ये अद्भुत चरित्र भगवान श्रीकृष्ण के बिना कौन कर सकता है ? उन श्रीहरि को नमस्कार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |