गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 3
नारदजी कहते हैं– यह सुनकर कार्य करने-वाले सब गोपों ने घर-घर में जाकर गोपियों के सुनते हुए वह सारा कथन ज्यों-का-त्यों दोहरा दिया। यह सुनकर गोपियों का हृदय उद्विग हो उठा। वे भावी विरह की आशंका से विह्वल हो गयीं और घर-घर में एकत्र हो, वे सब-की-सब परस्पर इसी विषय की बातें करने लगीं। नृपेश्वर ! महात्मा श्रीकृष्ण के प्रस्थान की यह बात वृषभानुवर के भी घर में पहुँच गयी। ‘प्रियतम चले जायँगे’– यह समाचार भरी सभा में अकस्मात सुनकर वृषभानुनन्दिनी अत्यन्त दु:खित हो गयीं। वे हवा की मारी हुई कदली की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ीं और मुर्च्छित हो गयीं। किन्हीं गोपियों की मुखश्री अत्यन्त मलिन हो गयी। हाथ की अँगूठियाँ कलाइयों के कंगन बन गयीं। उनके केशों के बन्धन ढीले हो गये और उनमें गुँथे हुए फूल शीघ्र ही शिथिल होकर गिर पड़े। वे गोपियाँ चित्र-लिखी-सी खड़ी रह गयीं। नृपेश्वर ! कुछ गोपियाँ अपने घर में ‘श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे’–यों कहते हुई अत्यन्त विह्वल हो गयीं और घर के सारे काम-काज छोड़कर योगी की भाँति ध्यानानन्द में मग्न हो गयीं। राजन् ! कुछ गोपियाँ समर्थ रहीं, वे एकत्र हो, एक साथ आपस में इस प्रकार बातें करने लगीं। बात करते समय उनके कण्ठ गद्गद हो गये थे और वाणी लडखड़ा रही थी। उनके नेत्रों से स्वत: अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। गोपियाँ बोली– अहो ! अत्यन्त निर्मोही जिनका चरित्र बड़ा विचित्र होता है। वह कहने योग्य नहीं है। निर्मोही मनुष्य मुँह से तो कुछ और कहता है, परंतु हृदय कुछ और ही भाव रखता है। उसके मन की बात तो देवता भी नहीं जानता, फिर मनुष्य कैसे जान सकता है ? रास में इन्होंने जो-जो बात कही थी, उस सबको अधूरी ही छोड़कर वे चले जाने को उद्यत हो गये हैं। अहो ! हमारे इन प्राणवल्लभ के मथुरापुरी चले जाने पर हम सबको कौन-कौन-सा कष्ट नहीं होगा। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीमथुरा खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘अक्रूर का आगमन' नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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