गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 3
इस प्रकार बलराम सहित श्रीहरि उनसे मिलकर शीघ्र ही उन्हें घर ले आये और वहाँ उन्होंने उनके लिये श्रेष्ठ आसन दिया। अतिथि सत्कार में एक गाय देकर प्रेमपूर्वक सरस भोजन प्रस्तुत किया। नन्द ने अक्रूर को दोनों हाथों द्वारा हृदय से लगाकर पूछा– ‘अहो ! तुम कंस के राज्य में कैसे जी रहे हो ? जिस निर्लज्ज ने अपनी बहिन के नन्हे-से शिशुओं को मार डाला, वह दूसरे लोगों के प्रति दयालु कैसे होगा ?’ नन्दजी जब घर में चले गये, तब श्रीहरि ने उनसे माता-पिता की सारी कुशल पूछी। इसी प्रकार अपने बन्धु-बान्धव यादवों का समाचार पूछकर कंस की सारी विपरीत बुद्धि के विषय में भी जिज्ञासा की। अक्रूर बोले– देव ! परसों की बात है, भोजराज कंस हाथ में तलवार ले वसुदेव को मार डालने के लिये उद्यत हो गया था, किंतु नारदजी ने उसे रोक दिया था। समस्त यादव-बन्धु-बान्धव भय से विह्वल और दु:खी हैं। भूमन् ! कितने ही कंस के भय से कुटुम्ब सहित दूसरे देशों में चले गये हैं। वह आज ही यादवों को मार डालने और देवताओं को जीत लेने के लिए उद्योगशाल है। इस पृथ्वी पर बलवान दैत्यराज कंस कुछ और भी करना चाहता है। अत: आप दोनों को जगत का अक्षय कल्याण करने के लिये वहाँ अवश्य चलाना चाहिये। आप दोनों प्रभुओं के बिना सत्पुरुषों का कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। नारदजी कहते हैं– राजन् ! अक्रूरजी की बात सुनकर बलराम सहित भगवान श्रीकृष्ण ने नन्दराज की सलाह लेकर कार्यकर्ता गोपों से इस प्रकार कहा। श्रीभगवान बोले– बन्धुओं ! बड़े-बूढे़ गोपों के साथ बलराम सहित मैं तथा नन्दराज भी मथुरा जायँगे। नवों नन्द और उपनन्द तथा छहों वृषभानु सब लोग प्रात:काल उठकर मथुरा की यात्रा करेंगे, अत: तुम सब लोग दही, दूध और घी आदि गोरस एकत्र करो। उसके साथ राजा को देने के लिये अन्यान्य उपायन भी होंगे। छकड़ों के साथ रथों को भी ठीक-ठाक करके शीघ्र तैयार कर लो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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