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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
35.परमार्थ का निरूपण
फिर कहते हैं, ”मेरे भागवत धर्म का आश्रय लेते हुए, ज्ञाननिष्ठ होकर तुम अपने स्वरूप में स्थित हो जाना।“ ऐसा कहकर भगवान ने दारुक को द्वारका भेज दिया। इतने में ब्रह्माजी, शिवजी आदि सभी देवता तथा ऋषिगण भगवान का महाप्रयाण देखने के लिए वहाँ पहुँच गए, और श्रीकृष्ण के जन्म, लीला आदि का गान करने लगे। लेकिन वहाँ तो आश्चर्य ही हो गया।
श्री शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं - इस प्रकार जो भगवान के सुन्दर अवतार तथ उनके बाल चरित्र व कैशोर चरित्र का श्रवण करता है, उसे भक्ति प्राप्त होती है, परमहंस की गति प्राप्त हो जाती है। इसी प्रसंग के साथ ही एकादश सकन्ध पूर्ण होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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