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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
14.नवम प्रश्न - भिन्न-भिन्न युगों में भगवत प्राप्ति के साधन
नारद जी कहते हैं, “इस प्रकार राजा निमि ने नवयोगियों से ज्ञान-भक्ति सम्बन्धी अपने सारे (नौ) प्रश्नो के उत्तर सुने। सुनकर वे बहुत प्रसन्न हो गए। फिर प्रसन्नचित्त होकर उन्होंने बड़ी श्रद्धा-भक्ति तथा कृतज्ञता के भाव से उन योगीश्वरों की पूजा की। उसके बाद सबके देखते-देखते ही वे नव योगी वहीं से अन्तर्धान हो गये। राजा निमि भी उनके उपदेशानुसार, उनके द्वारा बताए गए भागवत धर्म का अनुकरण करते हुए भगवान के साथ एकरूप हो गए। मुक्त हो गए।” इसके विपरीत, हम लोग साधन आदि के विषय में प्रश्न तो बहुत पूछते रहते हैं, परन्तु करते कुछ नहीं। हम लोगों की समस्या विचित्र है। निर्गुण में ध्यान लगता नहीं, सगुण में विश्वास होता नहीं। तो निर्गुण नहीं रहा, सगुण भी नहीं रहा, रह गया केवल दुर्गुण ! बार-बार पूछते रहते हैं। लेकिन करते कुछ नहीं। राजा निमि ऐसे नहीं थे। उन्होंने सारी बातें पूछ लीं और उसके बाद उनका पालन करके मुक्त हो गए। नारद जी ने कहा, “वसुदेव जी, देवकी जी, इसी प्रकार आपने भी प्रश्न पूछे, आपको उत्तर मिल गएं। अब आप इन्हीं भागवत धर्मों का आचरण कीजिए। तब आप भी मुक्त हो जाएँगे। आप तो इतने भाग्यवान् हैं कि नारायण भगवान स्वयं आपके पुत्र बनकर आये हुए हैं। आपके जैस भाग्य और किसका हो सकता है? आप श्रीकृष्ण में केवल पुत्र बुद्धि न रखिए, उन्हें केवल अपना पुत्र मानकर न बैठिए। वे तो ब्रह्म हैं, साक्षात् परमात्मा हैं, अतः उन्हें पुत्र भाव से प्यार करना तो ठीक है लेकिन साथ ही ब्रह्म रूप से जानना भी जरूरी है। उनमें ब्रह्म बुद्धि बनाए रखते हुए आप उनकी भक्ति कीजिए।” नारद जी के द्वारा इस नवयोगी प्रसंग को सुनकर देवकी तथा वसुदेव जी आश्चर्यचकित हो गए। विस्मित हो गए। उन्होंने अपना मोह छोड़ दिया। नारद जी के वचनों से उनको भी उसी प्रकार की भक्ति प्राप्त हो गयी और वे मुक्त हो गए। जो कोई पुरुष इस नवयोगी उपदेश को पढ़ता है, सुनता है, इसका ध्यान, इस प्रसंग पर चिन्तन करता है, ब्रह्म स्वरूप बनने के योग्य होकर फिर ब्रह्म ही बन जाता है। यह है इसकी फल-श्रुति। इस प्रकार यह पावन इतिहास-नव योगियों का बड़ा ही सुन्दर प्रसंग यहाँ समाप्त होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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