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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
11.पूतना-मोक्ष
जहाँ सारे लोग ब्रह्म को देख रहे थे, उनका भी ध्यान इस माया ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया। उनको ऐसा लगा कि किसी बड़े घर की संभ्रान्त महिला बनकर जैसे साक्षात् लक्ष्मी जी चली आई हों। वह आते ही बड़ा प्यार जताते हुए कहने लगी कि कितना प्यारा बच्चा है। मैं इसको दूध पिलना चाहती हूँ। वहाँ रोहिणी जी, यशोदा मैया आदि जो भी थे, वे सब इस पूतना के मायावी रूप से ऐसे मोहित हो गए कि सब देखते रह गए। किसी ने रोका नहीं उसे। उसने बच्चे को गोद में ले लिया और उसके मुँह में अपना स्तन दे दिया।
अब, भगवान तो ‘चराचरात्मा’ चराचर सृष्टि के आत्मा हैं। वे पहचान गए कि यह तो ‘बालकमारिकाग्रह’ बालकों को मारने वाली हैं। उसे देखकर उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली। भगवान ने आँखें बन्द कर लीं- इस बात पर भक्त कवियों ने अनेक उत्प्रेक्षाएँ की हैं। श्री हरिसूरी जी ने भक्ति रसायन नामक एक ग्रन्थ लिखा है। उन्होंने भी भगवान नेत्र बन्द करने के कई कारण बताए हैं। उन सब में से कुछ भावों को हम यहाँ देखेंगे।
1.भगवान ने आँखें बन्द कर लीं क्योंकि वे समझ गए कि पूतना अब उन्हें जहर पिलाने वाली है। किसी बच्चे को जब कड़वी दवाई पीनी होती है तो वह आँखें बंद करके ही पीता है। भगवान ने सोचा कि पीना तो है ही, अब क्या करें? आँखें बंद करके पी लेते हैं। कड़वी चीज पीनी है इसलिए भगवान ने आँखें बन्द कर लीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.6.8
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