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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.राजा बलि के अभिमान का निवारण
भगवान आपने मेरे ऊपर ऐसी कृपा की है कि मेरे पास बोलने के लिए शब्द ही नहीं है। प्रह्लाद जी कहने लगे-
भगवान आपने अपने चरण इसके मस्तक पर रख कर जो कृपा प्रसाद इसे दिया है वह तो ब्रह्माजी को भी नहीं मिला। देखो, लक्ष्मी जी उनकी प्रिया हैं, लक्ष्मी जी को भी मस्तक के ऊपर चरण कमलों का स्पर्श कभी नहीं मिला, शिव जी को भी नहीं मिला, बलि को मिल गया। प्रह्लाद जी कहते हैं- अरे बलि! तुझे मालूम है तेरा भाग्य कितना बड़ा है? कर कमलों से भी चरण कमलों का स्पर्श श्रेष्ठ है। भक्त तो चरण कमल पकड़ता है, और यहाँ भगवान स्वयं चरण कमल मस्तक पर रख देते हैं। इसका अर्थ यह है कि दिमाग में जो अभिमान भरा पड़ा है उसे भगवान दूर कर देते हैं। शुक्राचार्य जी की भी बुद्धि शुद्ध हो गई। अब वामन भगवान बलि को सुतल लोक भेज देते हैं। इन्द्र से कहते हैं- अपना स्वर्ग लोक वापस ले लो। अदिति बड़ी प्रसन्न होती हैं कि मेरे बेटों को राज्य वापस मिल गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 8.23.6
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