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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.बलि की सत्यसन्धता
भगवान ने उसी समय विराट् रूप धारण कर लिया जिसका वर्णन हम पहले ही दूसरे स्कन्ध में देख चुके हैं। भगवान के विशाल रूप ने पाताल से लेकर ब्रह्मलोक तक को व्याप्त कर लिया। उनका पैर इतना बड़ा हो गया कि एक पैर से उन्होंने पृथ्वी को और दूसरे पैर से स्वर्ग को व्याप्त कर लिया। उनका दूसरा पैर जब स्वर्ग में चला गया तो वहाँ ब्रह्मा जी बोले- अरे! भगवान का पैर आ गया है, ऐसा कहकर उन्होंने भगवान के पैर को धोया तो वहाँ से जो जल बह निकला, वही गंगा जी हैं और वे सबको पवित्र कर रही है। उस समय ब्रह्मा जी का एक अवतार हुआ ‘जाम्बवान्-अवतार’। उसने भगवान के उस विराट रूप की सात बार प्रदक्षिणा कर ली। राम अवतार के समय वे कहते हैं- वामन अवतार के समय मैं युवा था परन्तु अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ, अन्यथा इस समुद्र को पार करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं होती। वामन भगवान के इस विशाल रूप को राजा बलि देख रहा था परन्तु वह घबराया नहीं। लेकिन राजा बलि के साथी, अन्य राक्षसों को बड़ा क्रोध आया।
जब समय हमारे अनुकूल हो जाएगा, तब हम भी इन्हें जीत लेंगे। ऐसी बात सुनकर दैत्यों ने लड़ाई बन्द कर दी और वे सब रसातल में चले गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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