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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.समुद्र-मन्थन
देखो भगवान बहुत चतुर हैं। उन्होंने देवताओं से कहा, “नाग का मुँह पकड़ो।” उन सब ने नाग का मुँह पकड़ लिया। और जब भगवान ने असुरों से कहा कि तुम पूँछ पकड़ो, तो असुरों ने अपनी मूँछ पर ताव देना शुरू किया। हम पूँछ पकड़ें? हम बड़े उच्च कुल के लोग पूँछ नहीं पकड़ते। हम तो मुँह की ओर जाने वाले हैं। भगवान ने धीरे से देवराज इन्द्र को संकेत कर दिया कि उन्हें मुँह पकड़ लेने दो, अच्छा है, साँप की पूँछ ही पकड़नी चाहिये। दूसरा कोई मुँह पकड़ ले, तो अच्छा ही है न? जब उससे जहर या कुछ और निकलेगा तो उन्हीं के ऊपर जायेगा। देखो, भगवान कैसे बचाते रहे हैं! बड़ी विस्मयकारी बात है। अब अजित भगवान तथा देवता लोग पूँछ की ओर चले गये, और असुर मुँह की ओर गये। जैसे ही मन्थन प्रारम्भ हुआ तो सब ने देखा कि मन्दराचल पर्वत समुद्र में डूबता जा रहा है। सब का मनोबल टूट गया और वे हताश हो गए। तब भगवान ने एक अद्भुत कच्छप का अवतार ले कर मन्दराचल को ऊपर उठाया। जब तक मन्थन चलता रहा भगवान उसे अपनी पीठ पर धारण किए रहे। भगवान ने देवताओं को बता दिया था कि यद्यपि तुम लोग अमृत चाहते हो, तथापि मन्थन से एकदम अमृत नहीं आयेगा। पहले हलाहल विष निकलेगा। उससे घबराना नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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