विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
अष्टम स्कन्ध
अब दूसरी बात को भी ठीक से समझ लेना चाहिए। जब हम स्वधर्म का पालन करते हैं, तब हमारी वासनाओं में परिवर्तन आने लगता है, हमारी वासनाएँ परिमार्जित होने लगती हैं, और जब सद्धर्म का आचरण होता है तब वासनाओं का क्षय होने लगता है। अभी हम में बहुत सारी कुवासनायें हैं। धीरे-धीरे उनको बदला जाता है। कर्तव्यपालन के द्वारा स्वभाव बदला जाता है। अब राजा परीक्षित कहते हैं- महाराज आपने स्वयम्भुव मनु की बात तो बनायी, लेकिन दूसरे भी जो मनु हुये और उन सब मन्वन्तरों में जो-जो बातें हुईं, वह सब भी आप मुझे बताइये। इस आठवें स्कन्ध में मन्वन्तरों की कथा के द्वारा भगवत् स्मरण रूपीधर्म, दान-धर्म, प्रतिज्ञा पूर्ति का धर्म आदि बताये गये हैं। भगवान के स्मरण से सारे संकट दूर हो जाते हैं, यह बात विशेष रूप से यहाँ बताई गई है। उसके बाद दान-धर्म का वर्णन है और फिर प्रतिज्ञा-पूर्ति का भी वर्णन है। पहले गजेंन्द्र की कथा कही गई है, उसके बाद राजा बलि तथा वामन भगवान की बड़ी प्यारी कथा है और उसके बाद अन्त में मत्स्यवतार की कथा है जिसके साथ समस्त ज्ञान की तथा सारे जीवों के जो बीज हैं, उन सबकी रक्षा करते हैं। प्रस्तावना के रूप में बताए गए इन सब प्रसंगों को अब हम विस्तार से देखेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |