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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.नाम-महिमा
भगवान बोले, ”लिया है, ‘नारायण’ बोला है उसने।“ तो देवतागण बोले - उसने आपको याद करके थोड़े ही नाम लिया, उसने तो अपने बच्चे को ध्यान में रख कर नारायण नाम लिया। उसको तो मालूम भी नहीं कि यह आपका नाम है। भगवान ने कहा, ”उसको मालूम नहीं, लेकिन मुझे तो मालूम है कि यह मेरा नाम है।“ इस प्रकार भगवान ने बहुत बढ़िया उत्तर दिया है उनके प्रश्न का। देखो, भगवान कैसे हैं। जीव को मुक्त करने के लिए वे प्रतीक्षा करते रहते हैं कि यह मुझे कोई कारण या निमित्त दे दे, तो मैं झट से इसको मुक्त कर दूँ। एक केमिस्ट्री पढ़ाने वाले प्रोफेसर थे। उनके कालेज में एक फुटबाल खेलने वाला विद्यार्थी था। केमिस्ट्री पढ़ाने वाले प्रोफेसर को फुटबाल से बड़ा प्यार था। वह लड़का फुटबाल अच्छा खेलता था और इनको फुटबाल अच्छा लगता था। इसलिए वह इनका प्रिय था। वह विद्यार्थी केमिस्ट्री में प्रवेश चाहता था। अतः उसका साक्षात्कार भी होना था। उनको मालूम था कि वह फुटबाल तो अच्छा खेलता है, लेकिन केमिस्ट्री में उसका दिमाग चलता नहीं। लेकिन उनका प्रिय था, अब प्रवेश कराना है तो कैसे कराएँ? बोले इतना सरल प्रश्न पूछा जाए कि उसका उत्तर वह सरलता से दे सके। और फिर उससे क्या प्रश्न पूछा मालूम है? हम जो नमक खाते हैं उसका रासायनिक सूत्र क्या है? अब जिसने थोड़ी भी केमिस्ट्री पढ़ी हो वह जानता है कि नमक को सोडियम क्लोराइड कहते हैं। उस लड़के से पूछा - तो उसने कहा नहीं मालूम। ठीक, तुमको मालूम नहीं और तुमने सही उत्तर भी दिया कि नहीं मालूम। प्रवेश मिल गया। क्योंकि इन्होंने कहा था कि कोई सही उत्तर देता है तो उसका प्रवेश हो जाएगा! देखो, जिसको जिससे प्यार होता है, उसका हित करने के लिए वह तो केवल बहाना ढूँढता रहता है। भगवान ने कहा यहाँ प्रवेश देना है, जीव को मुक्त करना है तो कुछ बहाना चाहिए। कोई उसे मेरा नाम समझ कर कहे या अपने पुत्र का नाम मानकर कहे पर उसने ‘नारायण’ कहा तो है न? बस! वह मुक्त हो गया। भगवान ने ऐसा सरल और बढ़िया उपाय बना कर रख दिया है। परन्तु हमें इस पर सरलता से विश्वास होता नहीं। हम कहते हैं - नाम लेने से क्या होगा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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