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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.जड़ भरत व राजा रहूगण की भेंट
तैमूरलंग की एक कहानी है। तैमूरलंग एक मुसलमान शासक था। वह लंगड़ा था। उसने एक देश पर आक्रमण किया। वहाँ का राजा एक आँख से अन्धा था, उसको इसने जीत लिया। तैमूरलंग गद्दी पर बैठा था। तब उस राजा को सामने लाया गया। उसको एक आँख का देखकर तैमूरलंग को बड़ी हँसी आयी और वह जोर से हँसने लगा। उस राजा को बड़ा बुरा लगा। वह बोला, ”आप हँस रहे हैं? मेरी एक आँख है इसलिए आपको हँसी आ रही है? आज आप राज सिंहासन पर बैठे हैं लेकिन कल तक तो मैं बैठा था। और हो सकता है फिर कभी मैं बैठ जाऊँ।“ तो तैमूरलंग ने कहा, ”इसीलिए मुझे हँसी आ रही है। लगता है भगवान की दृष्टि में इस राज सिंहासन का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। अन्धे के हाथ से लेकर उसे लंगड़े को दे दिया। सच है या नहीं, एक आँख वाले से लेकर एक पैर वाले को दे दिया।“ तो भरतजी ने कहा कौन स्वामी और कौन सेवक, मैं तो उन्मत्त हूँ। मुझे कोई अन्तर नहीं पड़ता। मुझे जैसे चलना आता है वैसे ही चलूँगा। जब उन्होंने (जड़भरत ने) ऐसी बात कही तो राजा रहूगण समझ गए कि मैंने कुछ गड़बड़ कर दी है। कोई कहार या सामान्य आदमी ऐसी बात नहीं कर सकता। यह तो आत्मज्ञान की बात करता है। राजा ने कहा - ‘रोको’ और वे पालकी से कूद पड़े। उनको (जड़भरत जी को) प्रणाम करके कहने लगे - |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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