विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.जड़ भरत व राजा रहूगण की भेंट
कहने लगे, ”आप जो कह रहे हैं वह आपकी दृष्टि से सत्य ही है। मुझे बड़ा भार हो रहा है। मैं थक रहा हूँ। बोले यह शरीर यदि मैं हूँ, आगे मार्ग है, चलने का स्थान भी है और पालकी यदि मेरे ऊपर है, तो फिर यह भार होने की बात सही है, मेरी स्थूलता इत्यादि भी सही है। लेकिन वास्तव में यह स्थूलता, दुर्बलता जर्जरता आदि सब शरीर के धर्म हैं। उससे मेरा कुछ न बिगड़ता है न बनता है। और दूसरी बात जो आपने कहीं कि ठीक से चलो सो मैं तो वैसे ही चलूँगा जैसा मुझे आता है। और तीसरी बात जो आपने कही कि आप राजा हैं, मैं नौकर हूँ - तो महाराज यह दुनिया बड़ी विचित्र है, चक्र के समान है। यहाँ कभी कोई राजा बनता है कभी कोई। आज जो राजा है, वह कल नौकर बन जाता है, आज जो नौकर है वही कल को राजा बन जाता है। यहाँ पर इसका कोई भरोसा नहीं है कि कब कौन क्या बन जाए। व्यर्थ में ही लोगों को अपने राज्य आदि का अभिमान होता रहता है। राज्य आदि को भगवान कोई बड़ी चीज नहीं समझते। आज इसको दे दिया, कल उसको दे दिया। कभी मैं राजा और आप नौकर रहे होंगे।“ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 5.10.9
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |