विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.पृथु-चरित्र
जब पृथु राजा बने तो उस समय किसी को खाने के लिए अन्न भी नहीं मिल रहा था। लोग राजा पृथु के पास आये और आकर कहने लगे - आपको जो बड़े-बड़े कार्य करने हों वे सब आप बाद में करें। पहले तो आप हमें खाने का अन्न दें। भूख-प्यास से हम लोग मरे जा रहे हैं। राजा पथु ने उनसे पूछा - फसल नहीं होती क्या? क्या बात है, ऐसा कहते हुए अपना धनुष-बाण उठाकर वे चल पड़े। क्योंकि उनकी समझ में आ गया कि पृथ्वी ने अपना रस खींच लिया है। उनको धनुष-बाण लेकर आते देखा तो पृथ्वी गाय का रूप लेकर भागने लगी। राजा पृथु भी उसके पीछे-पीछे दौड़ पड़े। कहने लगे, ”कहाँ जा रही हो।“ अब वह घबरा कर उनकी शरण में आ गई। कहने लगीं, ”मैं तो आपकी दासी हूँ। आप मुझे ही मारने लगे? मैं तो स्त्री हूँ।“ वे बोले, ”जो दूसरों को दुःख देता है, वह चाहे स्त्री हो या पुरुष उसे दण्ड मिलना ही चाहिए। तुम्हारा नाम है ‘धरा’। धरा, वसुंधरा, वसुधा। ये सारे-के-सारे नाम तुमको किस लिए दिये गए हैं? सबको धारण करने वाली हो इसीलिए। वहाँ प्रजा मर रही है। किसी को अन्न नहीं मिल रहा।“ तो पृथ्वी माता ने कहा - ये लोग बड़े पापी हो गये हैं इसलिए मैंने सारा रस खींच लिया। जैसे गाय का बछड़ा हो, तो उसके लिए वह दूध देती है। ऐसे ही मेरे लिए भी कोई बछड़ा ले आए, तो मैं फिर से सब कुछ देना प्रारम्भ कर दूँगी। तब राजा पृथु ने स्वायम्भुव मनु का स्मरण किया। राजा मनु उनके (पृथ्वी माता के) वत्स हैं। अब पृथ्वी माता ने धन-धान्य आदि जितना कुछ छिपा लिया था, सब-का-सब प्रकट कर दिया। यहाँ बड़ा सुन्दर वर्णन है - देवताओं ने, पितरों ने, ऋषियों ने, सबने अपने-अपने काम की चीज पृथ्वी से प्राप्त कर ली। जहाँ कहीं पृथ्वी उबड़-खाबड़ थी उसको भी राजा पृथु ने समतल कर दिया।
कहते हैं कि राजा पृथु के पूर्व नगर, ग्राम आदि की व्यवस्था नहीं थी। राजा पृथु ने पहली बार ग्राम, नगर आदि सब अलग-अलग बसाये। उनमें अलग-अलग कस्बे बनाये गये, जिनमें लोग अपनी वृत्ति के अनुसार रह सकें। पहले सारे लोग चाहे जहाँ रहा करते थे। लेकिन अब राजा पृथु ने सब व्यवस्थित कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज