विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.पृथु-चरित्र
उनके गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि अपराधी स्वयं आपका पुत्र हो तो भी आप उसे दण्ड देंगे। निरपराध को आप कभी भी दण्डित नहीं करेंगे। आप प्रजा रञ्जन करेंगे - ‘रञ्जनात् राजा।’ इसलिए आपका राजा होना प्रमाणित हो जाएगा, सिद्ध हो जायेगा। आप दृढ़व्रत होंगे, सत्यसन्ध होंगे, ब्राह्मणों के तथा वृद्धों के सेवक होंगे। जो कोई आपकी शरण में आएगा आप उसकी रक्षा करेंगे। दूसरों का सम्मान देने वाले, दूसरों पर माँ के समान स्नेह की वर्षा करने वाले और परस्त्री के प्रति माँ की जैसी भक्ति रखने वाले होंगे। अपनी प्रजा से पिता के समान प्यार करने वाले और जो ब्रह्मज्ञानी हैं उनके आप सेवक होंगे। राजा पृथु का ऐसा वर्णन किया गया, ऐसी स्तुति की गई। पहले महादुष्ट राजा वेन राज्य कर रहा था। वह किसी को यज्ञ आदि पुण्य कर्म करने नहीं देता था। अतः पृथ्वी माता ने सारा-का-सारा रस खींच लिया था। क्योंकि दुष्ट लोगों के लिए पृथ्वी माता कुछ देती नहीं हैं। साधु-संतों के लिए देती रहती हैं। यहाँ ध्यान देने की बात है कि वर्तमान समय में भी हम देखते हैं कहीं अकाल पड़ रहा है, कहीं अधिक वर्षा हो रही है, तो कहीं फसल नहीं हो रही है। इसका अर्थ यही है कि हम बड़े पापी और दुष्ट स्वभाव वाले हो गये है। इसीलिये पृथ्वी का सारा-का-सारा रस लुप्त होता जा रहा है। इसी से, फिर जीवन में दुःख आता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज