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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.सगुण साकार का ध्यान
जो महापुरुष सभी प्रकार के कर्मों से निवृत्त हो गए हैं, ब्रह्म में ही रमते हैं, वे भी भगवान की कथा मे रमते हैं। इतना कह कर शुकदेव जी चुप हो गए। अब शौनकजी पूछते हैं, ‘‘क्या परीक्षित ने आगे कुछ पूछा नहीं? मुझे तो भगवान की कथा सुनने का बहुत मन करता है। मुझे लगता है, भगवान का स्मरण या चिन्तन किए बिना जो झण बीत गया वह व्यर्थ ही बीत गया। पेड़ पौधे क्या जीते नहीं? धौकनियाँ क्या श्वास नहीं लेती हैं? क्या ग्राम पशु खाते-पीते नहीं? बच्चे पैदा नहीं करते? हमारा सम्पूर्ण जीवन केवल भगवान में केंन्द्रित होना चाहिए। इसी बात के महत्त्व को दर्शाने के लिए कहते हैं- जो कान भगवान के गुण नहीं सुनते है, वे साँप के बिल के समान है, जो जीभ भगवान का गुणगान नहीं करती वह मेंढक की जीभ जैसी है, व्यर्थ ही टर्र-टर्र करती है। चाहे कोई मुकुटधारी (राजा) ही क्यों न हो, परन्तु यदि उसका मस्तक भगवान के चरणों में नहीं झुकता, तो वह मुकुट भी उसके सिर पर भार है। जो हाथ भगवान की पूजा नहीं करते, वे हाथ शवहस्त- प्रेत के हाथ हैं, भले ही कंगन आदि बहुत कुछ पहन रखे हों। जिसकी आँखे भगवान के रूप को, उनके चिह्नों को नहीं देखतीं वे मात्र मोर पंख पर दिखने वाली आँखों के समान हैं, अर्थात किसी काम की नहीं हैं। जिनके पाँव चल कर भगवान के दर्शन के लिए नहीं जाते, वे पेड़ के जैसे हैं। देखो, बात को कहने का यह कितना बढिया तरीका है। कहने का अर्थ है हमें अपनी समस्त इन्द्रियों के द्वारा भगवान की ही सेवा करनी है। देखना हो तो भगवान को ही देखें, सुनना हो तो भगवान के विषय में ही सुनें, स्पर्श करना हो तो भगवान का ही स्पर्श करें। फिर कहते हैं- जो मनुष्य भगवान की चरणधूलि प्राप्त नहीं करता, जो भगवान के चरण कमलों पर चढ़े हुए तुलसी को, फूल को नहीं सूंघता वह जीते जी मरा हुआ है।
वह हृदय पत्थर है, जो भगवान की कथा सुनकर पिघलता नहीं। जिसकी आँखो में कभी प्रेमाश्रु नहीं आते, जिसे कभी रोमांच नहीं होता, जिसका कण्ठ कभी गद्गद् नहीं होता, वह पत्थर से भी कठोर है। भगवान।! इसलिए अब आप मुझे आगे की कथा सनाइए। सूतजी बोले- आपने बहुत अच्छी बात पूछी है। परीक्षित को भी इतनी-सी बात से संतोष नहीं हुआ था। परीक्षित ने शुकदेव जी से कहा था कि आप कहते हैं भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप निरंतर बोलते रहिए तो अनायास ही स्मरण बना रहेगा और अन्य सभी विषयों से मेरा मन हठ जाएगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 2.3.24
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