गर्ग संहिता
गर्ग संहिता-माहात्म्य : अध्याय 2
(वे सोचते रहते थे कि) ‘पुत्रहीन मनुष्य का जन्म निष्फल है। जिसके पुत्र नहीं है, उसका घर सूना-सा लगता है और मन सदा दु:खाभिभूत रहता है। पुत्र के बिना मनुष्य देवता, मनुष्य और पितरों के ऋण से उऋण नहीं हो सकता। इसलिये बुद्धिमान मनुष्य को चाहिये कि वह सभी प्रकार के उपायों का आश्रय लेकर पुत्र उत्पन्न करे। उसी की भूतल पर कीर्ति होती है और परलोक में उसे शुभगति प्राप्त होती है। जिन पुण्यशाली पुरुषों के घर में पुत्र का जन्म होता है, उनके भवन में आयु, आरोग्य और सम्पत्ति सदा बनी रहती है।’ राजा अपने मन में यों लगातार सोचा करते थे, जिससे उन्हें शान्ति नहीं मिलती थी। अपने सिर के बालों श्वेत हुआ देखकर वे रात-दिन शोक में निमग्न रहते थे। एक समय मुनीश्वर शाण्डिल्य स्वेच्छापूर्वक विचरते हुए प्रतिबाहु से मिलने के लिये उनकी राजधानी मधुपुरी (मथुरा) में आये। उन्हें देखकर राजा सहसा अपने सिंहासन से उठ पड़े और उन्हें आसन आदि देकर सम्मानित किया। पुन: मधुपर्क आदि निवेदन करके हर्षपूर्वक उनका पूजन किया। राजा को उदासीन देखकर महर्षि को परम विस्मय हुआ। ततपश्चात मुनीश्वर ने स्वस्तिवाचन पूर्वक राजा का अभिनन्दन करके उनसे राज्य के सातों अंगों के विषय में कुशल पूछी। तब नृपश्रेष्ठ प्रतिबाहु अपनी कुशल निवेदन करने के लिये बोले। राजा ने कहा- ब्रह्मन ! पूर्वजन्मार्जित दोष के कारण इस समय मुझे जो दु:ख प्राप्त है, अपने उस कष्ट के विषय में मैं क्या कहूँ ? भला, आप-जैसे ऋषियों के लिये क्या अज्ञात है ? मुझे अपने राष्ट्र तथा नगर में कुछ भी सुख दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? किस प्रकार मुझे पुत्र की प्राप्ति हो। ‘राजा के बाद जो हमारी रक्षा करे- ऐसा हमलोग किसी को नहीं देख रहे हैं ।’ इस बात को स्मरण करके मेरी सारी प्रजा दु:खी है। ब्रह्मन ! आप तो साक्षात दिव्यदर्शी है; अत: मुझे ऐसा उपाय बतलाइये, जिससे मुझे वंश प्रवर्तकदीर्घायु पुत्र की प्राप्ति हो जाय। महादेवजी बोले- देवि ! उस दु:खी राजा के इस वचन को सुनकर मुनिवर्य शाण्डिल्य राजा के दु:ख को शान्त करते हुए-से बोले। इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तंत्र में पार्वती-शंकर-संवाद में ‘गर्गसंहिता का माहात्म्य’ विषयक दूसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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