गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 46
श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन ! वेणु बजाने वाले श्यामसुंदर की महिमा का वर्णन सुनकर श्रीराधा प्रसन्न होकर उठी और उन्होंने प्रियतम का गाढ़ और आलिंगन किया। तत्पश्चात् वृंदावनाधीश्वर गोविंद वृंदावन में वृंदावनवासी प्राण वल्लभा के साथ उस वन के वृक्षों की शोभा देखते हुए विहार करने लगे। नृपश्रेष्ठ ! तदनंतर व्रज की युवतियों से सब ओर से श्रीकृष्ण को उसी तरह जा पकड़ा, जैसे वर्षाकाल में चपलाएँ मेघ को घेर लेती हैं। राजन् ! वहाँ जितनी गोपियाँ विद्यमान थीं उतने ही रूप धारण करके श्याम सुंदर उन सबके साथ यमुना पुलिन पर आए। जैसे पूर्वकाल में श्रुतियाँ भगवान से मिलकर प्रसन्न हुई थीं उसी प्रकार गोपांगनाएं श्यामसुंदर के साथ परम आनंद का अनुभव करने लगीं। उन्होंने श्री कृष्णचंद्र को अपने अपने वस्त्रों का आसन दिया। राजन् ! उस आसन पर श्रीराधारमण नन्दनन्दन राधा के साथ बैठे। अहो ! उन गोप सुंदरियों ने अपनी भक्ति से भगवान को वश में कर लिया था। श्रीकृष्ण ने गोलोक में जैसा रूप दिखाया था वैसा ही त्रिभुवन मोहन रूप उन्होंने उस समय राधा सहित गोपांगनाओं के साथ समक्ष प्रकट किया। गोकुलचंद्र का वह परम अद्भुत सुंदर रूप देखकर गोप सुंदरियां ब्रह्मानंद में निमग्न हो अपने आप में भूल गईं । उनके साथ स्थल में विहार करके उनकी भक्ति के वशीभूत हुए श्यामसुंदर ने श्रीराधा और गोपांगनाओं के साथ यमुना के जल में प्रवेश किया। भगवान ने वहाँ उन व्रज सुंदरियों के साथ उसी प्रकार विहार किया, जैसे स्वर्ग देवराज इंद्र अप्सराओं के साथ मंदाकिनी के जल में करते हैं। राजन् ! माधव माधवी को और माधवी माधवों को जल में परस्पर भिगोने लगे। वे दोनों बड़ी उतावली के साथ एक दूसरे पर पानी उछालते थे। नरेश्वर ! गोपांगनाओं की वेणी और केश पाश से गिर हुए फूलों से यमुनाजी की वैसी ही विचित्र शोभा हुई, जैसे अनेक रंगों के छाप से छपी हुई नीली पगड़ी शोभा पाती है। विद्याधरियाँ और देवांगनाएँ फूल बरसाने लगीं। उनकी साड़ियों की नीवी ढीली पड़ गईं। और वे प्रेमावेश से व्याकुल हो मोह को प्राप्त हो गईं । राजेंद्र ! तदनंतर जल विहार समाप्त करके श्यामसुंदर लीलापूर्वक बाहर निकाले और गोवर्धन पर्वत पर गए। नृपेश्वर ! उनकी सहचरी गोपियाँ भी उनके साथ चली गईं। किन्हीं के हाथों में व्यजन थे और कितनी ही चंवर ढुलाती चल रही थीं। किन्हीं के हाथों में पान के बीड़े थे। बहुत सी गोपियां दर्पण लिए चलती थीं। कितनों के हाथों में नाना प्रकार के आभूषणों के पात्र थे और कितने ही पुष्प भार लिए जा रही थीं। कुछ गोपियों के हाथों में चंदन के पात्र थे और कुछ विभिन्न प्रकार के बर्तनों का भार ढो रही थीं। कोई महावर लिए जाती थी और कोई वस्त्र। किन्हीं के हाथों में मृदंग थे तो कोई झाँझ लिए हुए थी। कोई मुरयष्ठिधारिणी तो कोई वीणा धारिणी, कोई करताल लिए चलती थी और कोई गीत गाती जा रही थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |