गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 2
फिर श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ। भगवान के बालकृष्णरूप की दिव्य झांकी का वर्णन ऋषि वेदव्यास द्वारा किया गया है। वसुदेव ने भगवान के उस दिव्य स्वका स्तवन किया। जगदीश्वर श्रीकृष्ण ने देवकी और वसुदेव के पूर्वजन्म सम्बन्धी पुण्यकर्मों का वर्णन किया। तदनन्तर भगवदीय आज्ञा के अनुसार वसुदेवजी बालकृष्ण को गोकुल पहुँचा आये और वहाँ से यशोदा की कन्या उठा लाये। कंस ने उस कन्या को पत्थर पर दे मारा; परंतु वह आकाश में उड़ गयी और कंस को यह बताती गयी की ‘तेरा काल कहीं प्रकट हो चुका है’। कंस का निकट जाकर वसुदेव को बन्धन मुक्त कर देना आदि बातें घटित हुई। कंस ने दैत्यों की सभा में दुष्तापूर्ण मन्त्रणा की और साधुपुरुषों तथा बालकों के प्रति उपद्रव प्रारम्भ करवाया। व्रज में श्रीकृष्ण का प्राकट्य होने पर व्रजराज नन्द के भवन में महान उत्सव मनाया गया। नन्दराजजी राजा कंस को भेंट देने के लिए मथुरा गये और वहाँ वसुदेवजी के साथ उनकी भेंट हुई। उधर गोकुल में विषमिश्रित स्तनपान कराने के लिए आयी हुई पूतना के प्राणों को भगवान उसके दूध के साथ ही पी गये। उसके मरे हुए शरीर को देखकर मथुरा से लौटे हुए नन्दादिगोपों को बड़ा विस्मय हुआ। उसक बाद एक दिन श्रीकृष्ण के पैरों का हल्का-सा आघात पाकर दूध-दही के मटकों से भरा हुआ छकड़ा उलट गया। बवंडर-रूपधारी ‘तृणावर्त’ नामक दैत्या का शिशु श्रीकृष्ण के हाथों वध हुआ। एक दिन मैया यशोदा बाल-कृष्ण को लाड़ प्यार कर रही थीं। इतने में ही उन्हें जंभाई आयी और उनके मुख में माता को सम्पूर्ण विश्व का दर्शन हुआ। तदनन्तर बलराम और श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार हुए। फिर वज्रभूमि में दन दोनों भाइयों की बालक्रीड़ा होने लगी। गोपांगनाओं के घरों में घूसकर धुर्ततापूर्ण व्यवहार दही-माखन चुराने के खेल चलने लगे। प्रसंगवश किसी दिन मिट्टी खा ली और माता को मुख में सम्पूर्ण विश्व का दर्शन कराया। नन्द और यशोदा को श्रीकृष्ण के लालन-पालन का सुख कैसे सुलभ हुआ, इस प्रसंग में उन दोनों के पूर्वजन्म सम्बन्धी सौभाग्यवर्धक सत्कर्म की चर्चा हुई। माखन की चोरी, रस्सी से कमर में बलपूर्वक बांधा जाना, ‘यमलार्जुन’ नामक वृक्षों का भंग होना, उनके शाप की निवृत्ति, उन दोनों के द्वारा भगवान की स्तुति, बालक्रीड़ा, उपनन्द आदि की मन्त्रणा, वहाँ से वृन्दावनगमन, वहाँ समवयस्क ग्वालबालों के साथ बछड़े चराना, उसी प्रसंग में वत्सासुर, वकासुर और अघासुर का वध, सखाओं के साथ श्रीहरि का यमुना तट पर प्रशंसापूर्वक भोजन, ब्रह्माजी के द्वारा बछड़ों और ग्वालबालों का हरण, श्रीकृष्ण का स्वयं ग्वालबाल और बछड़े बन जाना, बह्मा का जाना और फिर मोहनिवृत्त होने पर लौटकर भगवान की स्तुति करना, श्रीकृष्ण का गोपबालकों के साथ विहार तथा वज्र में गमन, गोचारण के प्रसंग में बड़ी-बड़ी क्रीडाएं, धेनुकासुर आदि का वध, संध्या के समय व्रज में आगमन तथा श्रीकृष्ण का गोपीजनों के नेत्रों में महान उत्सव प्रदान करना आदि वृतान्त घटित हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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