गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 2
कालियनाग के विष से दूषित जल को पीने से मरे हुए गोपों को श्रीहरि ने जिलाया; कालियनाग का दमन किया। उस समय नगरपत्नियों ने भगवान की स्तुति की और उनके साथ वार्तालाप किया। फिर इस बात का वर्णन किसा की यमुना के हृदय में कालियनाग का सम्बन्ध कैसे हुआ ? तदनन्तर मुजांटवी में फैली हुई दावाग्नि को जीवन की रक्षा की, इस बात का प्रतिपादन हुआ है। खेल-खेल में ही प्रलम्बासुर का वध, दावानल से गौओं की रक्षा, वर्षा-वर्णन, शरद-वर्णन, गोपीगीत, गोकुल की गोप-किशोरियों द्वारा कात्यायनी व्रत का अनुष्ठान, उनके वस्त्रों का अपहरण, वृन्दावन के सौभाग्य का वर्णन ग्वालबालों का भगवान से भोजन माँगना और भगवान का उन्हें ब्राह्मणों के यज्ञ में भेजना, ब्राह्मण पत्नियों पर भगवान का कृपा-प्रसाद, ब्राह्मणों का अपनी मूढ़ता के लिये पश्चाताप, इन्द्र के यज्ञ की प्रथा मिटाकर गोवर्धन पूजन क्रम चलाना, कुपित हुए इन्द्र द्वारा की गयी घोर वृष्टि से वज्रवासियों की रक्षा के लिये भगवान का गोवर्धन पर्वत को छत्र की भाँति धारण करना, देवराज इन्द्र के गर्व को चूर्ण करना, महर्षि गर्ग के द्वारा नंदराय के यहाँ उत्पन्न श्रीकृष्ण -बलराम के भावी जातकोक्त फल का वर्णन, गोपों की शंका, भगवान के द्वारा उसका निवारण, इन्द्रधनु सुरभि के द्वारा भगवान का गोविन्द-पद पर अभिषेक और स्तवन, नन्दजी को वरूणलोक से छुड़ाकर लाना, गोपों को वैकुण्ठलोक में ले जाकर उसका दर्शन कराना, पांच अध्यायों में रात में होने वाली रासक्रीड़ा का वर्णन, नन्द का अजगर के मुख से उद्धार, शंखचूड़ का वध, गोपियों के युगलगीत, अरिष्टासुर का वध, कंस और नारद का संवाद, कंस और अक्रूर की बातचीत, श्रीकृष्ण के द्वारा केशी का वध, नारद-ऋषि का श्रीकृष्ण से वार्तालाप, व्योमासुर का वध, अक्रूर का गोकुल में आगमन, व्रज के दर्शनजनित आनन्द से उनके शरीर का पुलकित होना, अन्त:करण का हर्ष से खिल उठना, रोमांच होना, गद्गदवाणी में बोलना, बलराम और श्रीकृष्ण के साथ उनकी बातचीत, उनके द्वारा कंस की चेष्टाओं का वर्णन, बलराम और श्रीकृष्ण का मथुरा को प्रस्थान, गोपिजनों का विलाप, मथुरागमन, मार्ग में ही यमुना के हृद में प्रविष्ट हुए अक्रूर को भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन, उनके द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, फिर उन सबका मथुरापुरी में आगमन, नगर का दर्शन, नगर की सम्पत्ति का वर्णन, रजक का शिरश्छेदन, दर्जी को वरदान, सुदामा माली को वरदान, कुब्जा को श्रीकृष्ण का दर्शन, कंस के दुर्निमितों का दिखायी देना, कंस का रंगोत्सव, कुवलयापीड़ नामक हाथी का युद्ध में मारा जाना, पुरवासियों को बलराम और श्रीकृष्ण का दर्शन, उनके प्रति नागरिकों के मन में प्रेम की वृद्धि, रंगशाला में मल्लों का मारा जाना, बनधुओं सहित कंस का वध, श्रीकृष्ण-बलराम द्वारा माता-पिता को आश्वासन तथा समस्त सुहृदों को तोषदान, उग्रसेन का राजा के पद पर अभिषेक, नन्द आदि गोपों को वज्रभूमि की ओर लौटना, श्रीकृष्ण-बलराम का किंचित द्विजाति-संस्कार गुरु के घर जाकर विद्याध्ययन, उनके मरे हुए पुत्र को यमलोक से लाकर लौटाना, इसी प्रसंग में ‘पंचजन’ नामक दैत्य का वध, पुन: श्रीकृष्ण का मथुरा आगमन, मधुपुरी में महान उत्सव, उद्धव द्वारा उन्हें सान्त्वना-प्रदान, वज्रवासियों से मिलने के लिए श्रीकृष्ण का नन्द के गोकुल में आना, फिर कोलदैत्य का वध, कुब्जा-मिलन, अक्रूर को हस्तिनापुर भेजना तथा पाण्डवों के प्रति विषमतापूर्ण बर्ताव रोकने के लिए धृतराष्ट्र को समझाना इत्यादि प्रसंगों का वर्णन किया गया है। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में अश्वमेध चरित्र सुमेरू में ‘श्रीकृष्ण लीलाओं का वर्णन’ नामक दूसरा अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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