गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 14
महाभाग ब्राह्मण बोले- व्रजपति नन्द जी तथा व्रजेश्वरी यशोदे ! तुम चिंता मत करो। हम इस बालक की कवच आदि से रक्षा करेंगे, जिससे यह दीर्घजीवी हो जाये। श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! उन श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने कुशाग्रों, नूतन पल्लवों, पवित्र कलशों, शुद्ध जल तथा ऋक, यजु एवं सामवेद के स्तोत्रों और उत्तम स्वस्तिवाचन आदि के द्वारा विधि-विधान से यज्ञ करवाकर अग्नि की पूजा करायी।तब उन्होंने बालक श्रीकृष्ण की विधिवत रक्षा की (रक्षार्थ निम्नांकित कवच पढ़ा)। ब्राह्मणों ने कहा- भगवान दामोदर तुम्हारे चरणों की रक्षा करें। विष्टरश्रवा घुटनों की, श्रीविष्णु जाँघों की और स्वयं परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण तुम्हारी नाभिकी रक्षा करें। भगवान राधावल्लभ तुम्हारे कटि भाग की तथा पीताम्बरधारी तुम्हारे उदर की रक्षा करें। भगवान पद्मनाभ हृदय की, गोर्वधन धारी बाँहों की, मथुराधीश्वर मुख की एवं द्वारकानथ सिर की रक्षा करें। असुरों का सन्हार करने वाले भगवान पीठ की रक्षा करें और साक्षात भगवान गोविन्द सब ओर से तुम्हारी रक्षा करें और साक्षात भगवान गोविन्द सब ओर से तुम्हारी रक्षा करें। तीन श्लोक वाले इस स्तोत्र का जो मनुष्य निरंतर पाठ करेगा, उसे परम सुख की प्राप्ति होगी और उसे कहीं भी भय का सामना नहीं करना पड़ेगा[1] श्री नारद जी कहते हैं- तदनंतर नन्दजी ने उन ब्राह्मणों को एक लाख गायें, दस लाख स्वर्णमुद्राएँ, एक हजार नूतन रत्न और एक लाख बढ़िया वस्त्र दिये। उन श्रेष्ठ ब्राह्मणों के चले जाने पर नन्दजी ने गोपों को बुला-बुलाकर भोजन कराया और मनोहर वस्त्राभूषणों से उन सबका सत्कार किया। श्री बहुलाश्व ने पूछा- मुने ! यह तृणावर्त पहले जन्म में कौन-सा पुण्यकर्मा मनुष्य था, जो साक्षात परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण में लीन हो गया? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ब्राह्मणा ऊचु:-
दामोदर: पातु पादौ जानुनी विष्टरश्रवा:। ऊरू पातु हरिर्नाभिं परिपूर्णतम: स्वयम् ।।
कटिं राधापति: पातु पीतवासास्तवोदरम्। हृदयं पद्मनाभश्च भुजौ गोवर्धनोद्धर: ।।
मुखं च मथुरानाथो द्वारकेश: शिरोऽवतु। पृष्ठं पात्वसुरध्वंसी सर्वतो भगवान् स्वयम् ।।
श्लोकत्रयमिदं स्तोतत्रं य: पठेन्मानव: सदा। महासौख्यं भवेत्तस्य। न भयं विद्यते क्वचित् ।।-(गर्ग0, गोलोक0 14। 53-56)
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