गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 6
देवकी का सातवाँ गर्भ एक ही साथ हर्ष और शोक बढ़ाने वाला था। योग माया ने उसे व्रज में ले जाकर रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। तब मथुरा के लोगों ने कहा- ‘अहो ! देवकी का गर्भ कहाँ चला गया बड़े आश्चर्य की बात है। उसके पाँच दिन बाद भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को, जो स्वाति नक्षत्र और बुधवार से युक्त थी, मध्याह्न के समय, तुला लग्न में, जब पाँच ग्रह उच्च के होकर स्थित थे, व्रज में वसुदेव पत्नी रोहिणी के गर्भ से अपने तेज के द्वारा नन्द भवन को उद्भासित करते हुए महात्मा बलरामजी प्रकट हुए। उस समय मेघों ने जल बिन्दु बरसाये और देवताओं ने पुष्पों की वृष्टि की। नन्दजी ने शिशु का जातकर्म संस्कार करवाया। ब्राह्मणों को दस लाख गौएँ दान में दी, फिर गोपों को बुलाकर अच्छे- अच्छे गायकों के संगीत के साथ महामहोत्सव मनाया। तदनन्तर देवकी के आठवें गर्भ से अर्द्धरात्रि के समय परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्णचन्द्र अवतीर्ण हुए। उसी समय इधर नन्दरानी यशोदा जी के गर्भ से कन्या के रूप में योगमाया प्रकट हुई। योगमाया के प्रभाव से सारा जगत सो गया था। तब भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा वसुदेवजी श्रीकृष्णचन्द्र को लेकर यमुना के उस पार वृन्दावन में पहुँच गये और यशोदा के शयनागार में जाकर उन्होंने यशोदा की गोद में बालक श्री कृष्ण को सुला दिया और कन्या को लेकर वे अपने स्थान पर लौट आये। इसके बाद कारागार में बालक की रुदन ध्वनि सुनायी पड़ी शत्रु के भय से डरा हुआ कंस तुरंत आ पहुँचा और उसने तत्काल उत्पन्न हुई उस कन्या को उठा लिया एवं उसे एक शिला पर पटक दिया। ठीक उसी समय कंस के हाथ से छुटकर कन्या बड़े जोर से उछली और ऊपर आकाश में जाकर योगमाया के रूप में परिणत हो गयी। योगमाया ने कंस से कहा- रे दुष्ट ! तेरा पूर्व का शत्रु कहीं उत्पन्न हो चुका है। तू इन बेचारे दीन वसुदेव देवकी को व्यर्थ ही क्यों कष्ट दे रहा है इस प्रकार कहकर वे योगमाया विन्ध्याचल को चली गयीं। देवी के इन वचनों से कंस बड़े आश्चर्य में पड़ गया। फिर उसने देवकी और वसुदेव को तो छोड़ दिया और पूतना आदि दैत्यों को बुलाकर आज्ञा दी कि ‘दस दिन के अंदर पैदा हुए जितने भी बालक हों, सबको मार डालो। कंस की आज्ञा पाकर दैत्यगण बालकों का वध करने लगे। इधर नन्द ने भी पुत्र-जन्म सुनकर महान उत्सव मनाने की योजना की। हे कुरुराज ! इस प्रकार कंस के भय के बहाने भगवान बलराम और श्रीकृष्ण व्रज में पधारे। वे अपनी माया से ही वहाँ गुप्त रूप में रहे और व्रजवासियों पर कृपा करने के लिये व्रज में प्रकट होते ही विविध प्रकार की अद्भुत बाल-लीला करने लगे। अब तुम क्या सुनना चाहते हो। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्री बलभद्र खण्ड के अन्तर्गत श्री प्राडविपाक मुनि और दुर्योधन के संवाद में ‘श्रीबलराम और श्रीकृष्ण का प्राकट्य’ नामक पांचवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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