गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 24
पिशाचिनियाँ युद्ध में बच्चों को गरम-गरम रक्त पिलाती थीं और बच्चों को आश्वासन देते हुए कहती थीं- बेटा ! मत रोओ। हम तुम्हें इन लोगों की आँखे भी निकाल-निकालकर देंगी ।इस प्रकार भूतगणों का बल बढ़ाता देख बलदेव के छोटे भाई बलवान गद हाथ में गदा लेकर मेघों के समान गर्जना करने लगे। लाख भार की उस मौर्वी गदा से गदने उस विशाल भूत-सेना को उसी प्रकार मार गिराया, जैसे इन्द्र वज्र से पर्वतों को धराशायी कर देते हैं। गदा की मार से मस्तक फट जाने के कारण बहुत-से कूष्माण्ड, उन्माद, वेताल, पिशाच और ब्रह्मराक्षस मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पडे़। गद ने समरांगण मे डाकिनियों के दांत तोड़ डाले, प्रमथों के कंधे विदीर्ण कर दिये और यातुधानों के मुख छिन्न-भिन्न कर डाले। राजन ! गदा से रौंदे गये प्रेत दसों दिशाओं में उसी तरह भाग चले, जैस प्रलयकाल के समुद्र में भगवान वाराह की दाढ़ से अंग-भंग होने के कारण दैत्य पलायन कर गये थे ।भूतगणों के भाग जाने पर वीरभ्रद सामने आया। उस बलवान भूतनाथ ने बलदेव के छोट भाई गद को गदा से मारा। गद ने उसकी गदा को अपनी गदा पर रोक लिया और फिर अपनी गदा उसके ऊपर चलायी। मैथिलश्वर ! वीरभद्र और गद में बड़ा भयंकर गदायुद्ध हुआ। वे दोनों ही गदाएँ आग की चिनगारियाँ छोड़ती हुई परस्पर टकराकर चूर-चूर हो गयीं। फिर एक-दूसरे को ललकारते हुए उन दोनों मे मल्लयुद्ध छिड़ गया। वे भुजाओं, घुटनों और पैरों के आघात से पर्वतों को गिराते हुए लड़ने लगे। वीरभद्र ने बलपूर्वक करवीर पर्वत को उखाड़कर अटृहास करते हुए उसको गद के ऊपर फेंका। गद ने उस पर्वत को पकड़ लिया और फिर उसी के ऊपर उसे दे मारा। तब बलवान वीरभद्र ने वीरवर गद को पकड़कर बडे़ वेग से आकाश में लाख योजन दूर फेंक दिया। वहाँ से भूमि पर गिरने पर गद ने वीरभद्र को भी उठा लिया और वेग से घुमाकर शीघ्र ही उसे भी लाख योजना दूर फेंक दिया। वीरभद्र कैलास पर्वतों शिखर पर गिरा। गदा के प्रहार से तो वह पीड़ित था ही, अत: घड़ी तक मूर्च्छा में पड़ा रहा । तदनन्तर शक्ति उठाये स्वामी कार्तिकेय बडे़ वेग से युद्धभूमि में पहुँचे। उन्होंने अनिरुद्ध और साम्ब को लक्ष्य करके शीघ्र ही अपनी शक्ति चलायी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |