गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 24
अनिरुद्ध के रथ का भेदन कर, साम्ब को घायल करके, उनके रथ को भी तोड़ती हुई वह शक्त उस युद्धभूमि में सहस्त्रों हाथियों, रथों और लाखों वीरों को मारकर दसों दिशाओं में चमकती और कड़कती हुई बिजली की तरह फुफकारती सर्पिणी के समान भूमि में समा गयी। तब क्रोध से भरे महाबाहु जाम्बवती कुमार साम्ब ने प्रत्यंचा का घोष करते हुए तरकस से एक बाण के लाख रूप हो गये और लक्ष्यों तक पहुँचते-पहुँचते उसने कोटि रूप धारण कर लिये। इस प्रकार उस अनेक रूपधारी विशिख ने शिखी और शिखिवाहन स्वामि कार्तिकेय को घायल करके समरांगण में कोटि-कोटि वीरों को विदीर्ण कर डाला । कार्तिकेय के क्षत-विक्षत होने और कुछ व्याकुल चित हो जाने पर चूहे पर चढे हए गणेश्वर गजानन वहाँ आ पहुँचे। उनके कुम्भस्थल पर गोमूत्र, सिन्दूर और कस्तूरी के द्वारा विचित्र पत्र-रचना की गयी थी। उनका सुन्दर वक्रतुण्ड कुमकुम से आलिप्त था। सिन्दूरपूर्ण कपोलों के कारण उनकी बड़ी मनोहर आभा दिखायी देती थी। कानों का उज्ज्वल वर्ण मानों कपूर की धूल से धवलित किया गया था। उनके कपोलों पर बहती हुई मदधारा से जिनके अंग विह्वल हो रहे थे, वे मतवाले भ्रमर उनके चंचल कर्णतालों से आहत हो, गुंजारव करते हुए मानो संगीत, ताल और वासन्तिक राग की सृष्टि कर रहे थे। उन मधुपों से सेवित भाल-चन्द्रधारी गणपति अनुपम शोभा पा रहे थे। उनकी अंग-कान्ति बाल रवि के समान अरुणोज्ज्वल थी। उनकी अंग-कान्ति बालरवि के समान अरुणोज्ज्वल थी। उनकी बांहों में निर्मल अंगद, गले में हेमनिर्मित हार और हंसुली थी तथा मस्तक पर धारण किये हुए मुकुट की किरणों के द्वारा वे सब ओर से दीप्तिमान दिखायी देते थे वे चूहे पर विराजमान थे। उनके मुख में एक ही दांत था। गजाकार भव्य मूर्ति शोभा पा रही थी। उन्होंने हाथों में पाश, अंकुश, कमल और कुठार-समूह धारण कर रखे थे। उनका कद ऊंचा था उनके चार भुजाएं थीं। वे घोर संग्राम में प्रवृत्त थे। किन्हीं शस्त्रधारियों को सूंड़ में लपेटकर अपने अंकुश की मार से उनका कचूमर निकाल देते थे। अनेक धारवाले फरसे से समस्त शस्त्रधारियों का संहार करते हुए वे श्रीपरशुरामजी के समान जान पड़ते थे। पैदल वीरों, हाथियों, घोड़ों तथा रथ-समूहों से युक्त चतुरंगिणी सेना को धराशायी करके रथ सहित साम्ब को पकड़कर, वे युद्धस्थल से दूर फेंक रहे थे। उन्हें देखकर यादवगणों सहित प्रद्युम्न के मन में बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने अपने परम बुद्धिमान पुत्र अनिरुद्ध से यह उत्तम बात कही । इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘यक्ष युद्ध का वर्णन’ नामक चौबीसवां अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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