गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 21
कूष्माण्ड, उन्माद और बैतालगण भैरवनाद करते हुए आये और रुद्र की माला बनाने के लिये वहाँ से नरमुण्डों का संग्रह करने लगे। अपनी सेना को रणभूमि में गिरी देख महान धनुर्धर-शिरोमणि अनिरुद्ध बहुत बड़ी पताका वाले रथ पर आरुढ़ हो, भीष्म का सामना करने के लिये आगे बढे़। राजन् ! प्रलयकाल के महासागर से उठी हुई ऊँची-ऊँची भँवरों और तरंगों के भयानक घात प्रतिघात से प्रकट हुई ध्वनि के समान गम्भीर नाद करने वाली भीष्म के धनुष की प्रत्यंचा को प्रद्युम्ननन्दन अनिरुद्ध ने एक ही बाण से काट डाला- ठीक उसी तरह, जैसे गरुड़ ने अपनी तीखी चोंच से किसी नागिन के दो टुकडे़ कर दिये हों। तब मनस्वी भीष्म ने दूसरा धनुष लेकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ायी और युद्धभूमि में सबके देखते-देखते उस पर ब्रह्मास्त्र का संधान किया। उससे बड़ा प्रचण्ड तेज प्रकट हुआ। यह देख माधव अनिरुद्ध ने भी अपनी सेना की रक्षा के लिये स्वयं भी ब्रह्मास्त्र बारह सूर्यों के समान तेजस्वी होकर परस्पर युद्ध करने लगे। तब अनिरुद्ध ने तीनों लोकों का दहन करने में समर्थ उन दोनों अस्त्रों का उपसंहार कर दिया। साथ ही उन यदुकुल तिलक अनिरुद्ध ने गंगानन्दन भीष्म के विद्युत के समन दीप्तिमान धनुष को भी सायकों द्वारा उसी तरह काट डाला, जैसे सूर्य अपनी किरणों से कुहासे को नष्ट कर देता है। तब भीष्म ने लाख भार की बनी हई सुदृढ़ गदा हाथ में लेकर उसे अनिरुद्ध पर चलाया और सिंह के समान गर्जना की। जैसे गरुड़ किसी नागिन को पंजे से पकड़ ले, उसी प्रकार साक्षात भगवान अनिरुद्ध ने भीष्म की गदा को बायें हाथ से पकड़ लिया और दाहिने हाथ से अपनी गदा उनकी छाती पर दे मारी। उस गदा के प्रहार से व्यथित हो गंगानन्दन भीष्म मूर्च्छित होकर रथ से गिर पडे़। उस युद्ध मण्डल में वे आकाश से गिरे हुए सूर्य के समान जान पड़ते थे। तब वहीं खडे़ हुए महात्मा अनिरुद्ध पर कृपाचार्य ने सहसा शक्ति का प्रहार किया। उस समय रोष से उनके अधर फड़क रहे थे। नरेश्वर ! उस शक्ति को कृष्ण पुत्र दीप्तिमान ने मार्ग में ही अपनी तीखी धारवाली तलवार से उसी प्रकार काट दिया, जैसे किसी ने कटुवचन से मित्रता खण्डित कर दी हो। तदनन्तर रोष से भरे हुए महाबाहु द्रोणाचार्य ने बारंबार धनुष की टंकार करके भानु के ऊपर पर्वतास्त्र का प्रयोग किया। शत्रु की सेना को चूर्ण करते हुए बड़े-बड़े़ पर्वत आकाश से गिरने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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