गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 8
गान्दिनी पुत्र अक्रूर ने क्रोध से मुर्च्छित हो द्युमान के बाण-समूहों पर विजय पाकर उस वीर के ऊपर शक्ति से प्रहार किया। उस प्रहार से द्युमान का अंग विदीर्ण हो गया। वह दो घड़ी के लिये अपनी चेतना खो बैठा। परंतु युद्ध आरम्भ कर दिया। द्युमान ने लाख भार लोहे की बनी हुई एक भारी गदा हाथ में ली और उसके द्वारा अक्रूर की छाती पर चपेट करके मेघ के समान गर्जना की। उसके प्रहार से अक्रूर मन-ही-मन मन किंचित व्याकुल हो उठे। तब बार-बार अपने धनुष की टंकार करते हुए युयुधान सामने आये। उन्होंने खेल-खेल में एक ही बाण मारकर तुरंत द्युमान का मस्तक काट डाला। द्युमान के गिर जाने पर उसके वीर सैनिक युद्ध का मैदान छोड़कर भाग चले। उसी समय अपनी सेना को भागती देख शक्त वहाँ आ पहुँचा। उसने बुद्धिमान युयुधान पर सहसा शूल चलाया। युयुधान ने अपने बाण-समूहों से उस शूल क टुकडे़ कर दिये। इतने में ही महाबली वीर कृतवर्मा वहाँ आ पहुँचा। उसने बाण मारकर अश्वसहित शक्त के भी रथ को चूर-चूर कर दिया। तब शक्त ने भी गदा की चोट से कृतवर्मा ने रथ छोड़कर शक्त को रोषपूर्वक पकड़ लिया और उसे गिराकर दोनों भुजाओं से उछालकर एक योजन दूर फेंक दिया। उस युद्धभूमि में शक्त के गिर जाने पर शिशुपाल की आज्ञा से उसके दोनों मन्त्री रंग और पिंग क्रमश: ‘पृतना’ और ‘अक्षौहिणी’ सेनाओं के साथ बाण-वर्षा करते ओर युद्ध में शत्रुओं को कुचलते हुए आये। मैथिलेश्वर ! ऐसा जान पड़ता था, मानो अग्नि और वायु देवता एक साथ पहुँचे हैं। उन दोनों की उन दोंनों की सेना को देख पिता के समान पराक्रमी यादवेन्द्र प्रद्युम्न धनुष हाथ में लेकर भरी सभा में इस प्रकार बोले। प्रद्युम्न ने कहा- योद्धाओं ! रंग और पिंग के साथ होने वाले युद्ध में अग्रगामी होकर आऊँगा; क्योंकि रंग और पिंग महान बल-पराक्रम से सम्पन्न दिखायी देते हैं । श्रीनारदजी कहते हैं- प्रद्युम्न की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण के बलवान पुत्र नीतिवेता महाबाहु भानु सबसे आगे होकर अपने बडे़ भाई से बोले। भानु ने कहा- जब तीनों लोक एक साथ युद्ध के लिये आपके सम्मुख उपस्थित दिखायी दें, तब आपके धनुष की टंकार होगी, इसमें संशय नहीं हैं। मैं केवल तलवार से ही रंग और पिंग के मस्तक काटकर तरबूज के दो टुकड़ों की भाँति हाथ में लिये यहाँ प्रवेश करुँगा । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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