गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 24
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! उनका वचन सुनकर भक्तवत्सल श्रीबलराम गंगा- यमुना के बीच में बसी हुई कौशाम्बी नगरी को गये। बलरामजी को युद्ध के लिये आया हुआ सुनकर प्रचण्ड पराक्रमी कोल भी दस अक्षौहिणी सेना से सुसज्जित हो कौशाम्बी से बाहर निकला। प्रलय-काल के समुद्र की भाँति गर्जना करने वाली वह सेना एक नदी के समान आयी। चंचल घोडे़ उसकी उठती हुई तरंग माला थे। रथ और हाथी आदि उसमें तिमिंगल (मगर-मत्स्य) के समान प्रतीत होते थे। वीर योद्धारूपी भँवर उठ रहे थे। उसे देखकर बलरामजी ने हलका सेतु बाँध दिया और हलाग्रभाग से उस सेना को खींच-खींचकर मुसल के सुदृढ़ प्रहार से मारना आरम्भ किया। उनके प्रहार से एक साथ ही पैदल वीर, घोडे़, रथ और हाथी रणभूमि में फलों की भाँति पिस उठ और करोड़ों की संख्या में सब ओर धराशायी हो गये। शेष योद्धा भय से पीड़ित हो युद्ध मण्डल से भाग निकले। शस्त्रधारी दैत्य कोल बलरामजी के साथ अकेला ही युद्ध करने लगा। उस दैत्यराज ने बलदेवजी की और अपना हाथी बढ़ाया। उस हाथी के कुम्भस्थल पर गोमू़त्र में घोले हुए सिन्दूर और कस्तूरी के द्वारा पत्र-रचना की गयी थी। सोने की साँकल से युक्त कटिबन्ध रत्नखचित था। उसके गण्ड स्थल से मद झर रहा था। उसके चार दाँत थे। घंटे की ध्वनि से वह और भीषण प्रतीत होता था। उसका कद ऊँचा था और दिग्गज के समान चिग्घाड़ता था। उसके शरीर का रंग प्रलयकाल के मेघ के समान काला था। कोल तीखा अंकुश लेकर उसके कान की ओर से उस हाथी चढ़ गया था। कोल के द्वारा प्रेरित उस मतवाले हाथी को अपनी ओर आता देख बलदेवजी ने उसके ऊपर मुसल से उसी प्रकार प्रहार किया, जैसे इन्द्र ने वज्र से किसी पर्वत पर आघात किया हो। मिथिलेश्वर ! मुसल की मार से उस महान गजराज का मस्तक उसी प्रकार छिन्न-छिन्न हो गया, जैसे डंडे मार से कोई मिट्टी का घड़ा टूक-टूक हो गया हो। कोल का मुँह सूअर के समान था। लाल नेत्रों वाला वह दैत्य हाथी गिर पड़ा। उसने महात्मा माधव बलदेव के ऊपर तीखा शूल चलाया। विदेहराज ! तब बलराम ने मुसल से मारकर उसके शूल के उसी प्रकार सैकड़ों टुकडे़ कर दिये, जैसे किसी बालक ने लाठी के प्रहार से काँच के बर्तन तोड़ डाले हों। तब उस दुष्ट ने सहस्र भार (लगभग 3000 मन) लोहे की बनी हुई एक भारी गदा हाथ में लेकर बलरामजी की छाती पर चोट की और वह मेघ के समान गर्ज उठा। उस गदा के प्रहार को सहकर महाबली बलदेव ने काजल के समान काले शरीर वाले कोल के मस्तक पर मुसल से प्रहार किया। मुसल के प्रहार से उसका सिर फट गया और वह रणभूमि में गिर पड़ा, तो भी उठकर बलदेवजी को मुक्के से भारी चोट पहुँचाकर वह वहीं अन्तर्धान हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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