गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 10
बहुलाश्व ने पूछा– ब्रह्मन् ! सुदामा माली ने, जिसके घर में परम मनोहर बलराम और श्रीकृष्ण स्वयं पधारे थे, कौन-सा पुण्य किया था ? बताइये । नारदजी ने कहा– राजन् ! राजराज कुबेर का एक परम रमणीय सुन्दर वन है, जो चैत्ररथ-वन के नाम से प्रसिद्ध है। उसमें फूल लगाने वाला एक माली था, जो हेममाली के नाम से पुकारा जाता था। वह भगवान विष्णु के भजन में तत्पर, शान्त, दानशील तथा महान सत्संगी था। उसने भगवान श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये देवताओं की पूजा की। पाँच हजार वर्षों तक प्रतिदिन तीन सौ कमल-पुष्प लेकर वह भगवान शंकर के आगे रखता और उन्हें प्रणाम करता था। एक समय करूणानिधि त्रिनेत्रधारी भगवान शंकर उसके उपर अत्यन्त प्रसन्न हो बोले– ‘परम बुद्धिमान मालकार ! तुम इच्छानुसार वर माँगो।’ तब हेम-माली ने हाथ जोड़कर महादेवजी को नमस्कार किया और परिक्रमा करके उनके सामने खड़ा हो मस्तक झुकाकर कहा । हेममाली बोला– भगवन् ! परिपूर्णतम प्रभु श्रीकृष्ण कभी मेरे घर पधारें और मैं इन नेत्रों से उनका प्रत्यक्ष दर्शन करूँ– ऐसी मेरी इच्छा है। आपके वरदान से मेरी यह अभिलाषा पूर्ण हो । श्रीमहादेवजी ने कहा– महामते ! द्वापर के अन्त में भारत वर्ष की मथुरापुरी में तुम्हारा यह मनोरथ सफल होगा, इसमें संशय नहीं है। नारदजी कहते हैं– राजन् ! महादेवजी के वरदान से वह महामना हेममाली द्वापर के अन्त में सुदामा माली हुआ था इसीलिये साक्षात बलराम और श्रीकृष्ण भगवान शिव की वाणी सत्य करने के लिये उसके घर पधारे थे। अब और क्या सुनना चाहते हो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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