गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 8
बलरामजी ने सृष्टि और सुनामा को मुद्गर से मार डाला, न्यग्रोध को भुजाओं के वेग से धराशायी कर दिया और कंक्ड को बायें हाथ से गिराया। माधव ने शंखु, सुहुत और तुष्टिमान को बायें पैर से कुचल दिया तथा राष्ट्रपाल को दाहिने पैर के आघात से काल के गाल में भेज दिया। इस प्रकार आँधी के उखाडे़ हुए वृक्षों की भाँति वे आठों वीर सहसा धराशायी हो गये। विदेहराज ! उन सबकी ज्योति भगवान लीन हो गयी। देवताओं की दुन्दुभियाँ बजने लगीं। उस समय चारों ओर जय-जयकार होने लगी। देवता लोग उसी क्षण नन्दनवन के फूलों की वर्षा करने लगे। विद्याधरियाँ और गन्धर्वांग्नाएँ हर्ष से विह्वल हो नृत्य करने लगीं। विद्याधर, गन्धर्व और किंनर भगवान का यश गाने लगे। ब्रह्मा आदि देवता, मुनि और सिद्ध विमानों-द्वारा भगवान का दर्शन करन के लिये आये। वे वैदिक मंत्रों का पाठ करते हुए दिव्य वाणी द्वारा बलराम और श्रीकृष्ण -दोनों भाइयों की स्तुति करने लगे। स्त्रियाँ बोलीं- हा नाथ ! हे युद्धपते ! हे महाबली वीर ! तुम कहाँ चले गये ? तुम तो त्रिभुवन-विजय तथा साक्षात् देवताओं के लिये भी दुर्जय वीर थे। तुमने निर्दय होकर अपनी बहिन के नवजात बच्चों की हत्या की थी और दस दिन से कम और अधिक उम्रवाले दूसरे-दूसरे बालकों का भी बलपूर्वक वध कर डाला, उसी घोर पाप के कारण तुम ऐसी दशा को प्राप्त हुए हो। नारदजी कहते हैं- राजन् ! इस प्रकार अश्रु से भीगे मुखवाली दीन-दु:खी राजपत्नियों को धीरज बँधाकर लोक-भावन भगवान ने यमुना के तट पर श्रीखण्ड-चन्द से युक्त चिताएँ बनवायीं और मारे गये मामाओं की पारलौकिक क्रियाएँ करवाकर सबको समझाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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