गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 5
रजक ने कहा- अरे ! तुम्हारे बाप-दादों ने ऐसे ही वस्त्र धारण किये हैं क्या ? उदण्ड ग्वाल-बालों ! क्या तुम्हारे पूर्वज कौपीनधारी नहीं थे ? जंगल में रहने वाले गोपो ! यदि जीवन चाहते हो तो तुम सब-के-सब नगर से शीघ्र निकल जाओ, अन्यथा वस्त्र की की चोरी करने वाले तुम सब लोगों को मैं जेल में बंद करा दूँगा। नारदजी कहते हैं- राजन् ! इस तरह की बातें करने वाले उस रजक के मस्तक को यदुकुल तिलक श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में हाथ के अग्रभाग से ही मरोड़ दिया। विदेहराज ! उसके शरीर की ज्योति घनश्याम श्रीकृष्ण में लीन हो गयी। राजन् ! फिर तो उसके समस्त अनुगामी सेवक वस्त्रों के गट्ठर वहीं छोड़कर उसी तरह सब ओर भाग गये, जैसे शरत्काल में हवा के वेग से बादल छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। उन वस्त्रों में से बलराम और श्रीकृष्ण अपने पसंद के कपड़े लेकर जब खडे़ हो गये, तब शेष वस्त्रों को ग्वालबालों तथा अन्य राहगीरों ने ले लिया। उन वस्त्रों को कैसे पहनना चाहिये, यह बात ग्वालबाल नहीं जानते थे, अत: बलराम और श्रीकृष्ण के देखते-देखते वे उन सुन्दर वस्त्रों को अस्त-व्यस्त ढंग से पहनने लगे। इसी समय एक बालक ने उन दोनों भाइयों को देखकर विचित्र वर्ण वाले वस्त्रों को धारण कराकर श्रीकृष्ण और बलदेव दिव्य वेष बना दिये। राजन् ! इसी तरह अन्य गोप-बालकों को भी यथोचित्त वस्त्र पहनाकर उसने बड़ी भक्ति से श्रीकृष्ण का पुन: दर्शन किया। उस बालक पर प्रसन्न हो भगवान ने उसे अपना सारूप्य प्रदान किया तथा बलदेवजी ने भी पुन: उसे बल, लक्ष्मी और ऐश्वर्य प्रदान किया। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीमथुरा खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘श्रीकृष्ण का मथुरा में प्रवेश' नामक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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