गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 6
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! प्राग्ज्योतिषपुर में सर्वप्रथम महापराक्रमी प्रलम्बासुर कंस के साथ इस प्रकार युद्ध करने लगा, जैसे किसी पर्वत पर एक उद्भट सिंह के साथ दूसरा उद्भट सिंह लड़ता हो। कंस ने उस मल्लयुद्ध में प्रलम्बासुर को पकड़ा और पृथ्वी दे मारा। फिर उसे उठाकर प्राग्ज्योतिषपुर के स्वामी भौमासुर के पास फेंक दिया। तदनंतर ‘धेनुक’ नाम से विख्यात दानव ने आकर कंस को रोषपूर्वक पकड़ लिया। उसने दारुण बल का प्रयोग करके कंस को दूर तक पीछे हटा दिया। तब कंस ने भी धेनुकासुर को बहुत दूर पीछे ढ़केल दिया और सुदृढ़ घूँसों से मारकर उसके शरीर को चूर-चूर कर दिया। तदनंतर भौमासुर की आज्ञा से ‘तृणावर्त’ कंस को पकड़कर लाख योजन ऊपर आकाश में ले गया और वहीं युद्ध करने लगा। कंस ने अपनी अनंत शक्ति लगाकर बलपूर्वक उस दैत्य को आकाश से खींचकर पृथ्वी पर पटक दिया। उस समय तृणावर्त के मुँह से खून की धार बह चली। इसके बाद महाबली ‘बकासुर’ आकर अपनी चोंच से कंस को निगल जाने की चेष्टा करने लगा। कंस ने वज्र के समान कठोर मुक्के से प्रहार करके उसे भी धराशायी कर दिया। बलवान बकासुर फिर उठ गया। उसके पंख सफेद थे। वह मेघ के समान गम्भीर गर्जना करता था। क्रोधपूर्वक उड़कर तीखी चोंचवाले उस बकासुर ने कंस को निगल लिया। कंस का शरीर वज्र भाँति कठोर था। निगल जाने पर उसने उस दानव के गले की नली को रूँध दिया। फिर महान बली बकासुर ने कण्ठ छिद जाने के कारण कंस को मुँह से बाहर उगल दिया। तदनन्तर कंस ने उस दैत्य को पकड़कर जमीन पर पटका और दोनों हाथों से घुमाता हुआ उसे वह युद्धभूमि में घसीटने लगा। बकासुर की एक बहन थी। उसका नाम था-‘पूतना’। वह भी युद्ध करने के लिये उद्यत हो गयी। उसे उपस्थित देखकर कंस ने हँसते हुए कहा- ‘पूतने ! मेरी बात सुन लो। तुम स्त्री हो, मैं तुम्हारे साथ कभी भी लड़ नहीं सकता। अब यह बकासुर मेरा भाई और तुम बहन होकर रहो।’ तदनन्तर महान पराक्रमी कंस को देखकर भौमासुर ने भी पराजय स्वीकार कर ली। फिर देवताओं से युद्ध करने के समय सहायता प्रदान करने के लिये वह कंस के साथ सौहार्दपूर्ण बर्ताव करने लगा। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में गोलोक खण्ड के अंतर्गत नारद-बहुलाश्व संवाद में ‘कंस के बल का वर्णन’ नामक छठा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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