गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 15
बहुलाश्व बोले- मुने ! प्रभो ! दुर्वासा का दिया हुआ यमुनाजी का पंचांग क्या है, जिससे गोपियों को गोविन्द की प्राप्ति हो गयी ? उसका मुझसे वर्णन कीजिये ।।14।। श्रीनारदजी ने कहा- राजन् ! इस विषय में विज्ञजन एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण देते है, जिसके श्रवणमात्र से पापों की पूर्णतया निवृत्ति हो जाती है। अयोध्या में मांधाता नाम से प्रसिद्ध एक तेजस्वी राजशिरोमणि उस पुरी के अधिपति थे। एक दिन वे शिकार खेलने के लिये वन में गये और विचरते हुए, सौभरिमुनि के सुन्दर आश्रम साक्षात वृन्दावन में यमुनाजी के मनोहर तट पर स्थित था। वहाँ अपने जामाता सौभरिमुनि को प्रणाम करके मानदाता मांधाता ने कहा। मांधाता बोले- भगवन् ! आप साक्षात सर्वज्ञ हैं, परावरवेत्ताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं और अज्ञानान्धकार से अंधे हुए लोगों के लिये दूसरे दिव्य सूर्य के समान हैं। मुझे शीघ्र ही ऐसा कोई उत्तम साधन बताइये, जिससे इस लोक में सम्पूर्ण सिद्धियों से सम्पन्न राज्य बना रहे और परलोक में भगवान श्रीकृष्ण का सारूप्य प्राप्त हो। सौभरि बोले- राजन ! मैं तुम्हारे सामने यमुनाजी के पंचांग का वर्णन करूँगा, जो सदा समस्त सिद्धियों को देने वाला तथा श्रीकृष्ण के सारूप्य की प्राप्ति कराने वाला है। यह साधन जहाँ से सूर्य का उदय होता है और जहाँ वह अस्तभाव को प्राप्त होता है, वहाँ तक के राज्य की प्राप्ति कराने वाला तथा यहाँ श्रीकृष्ण को भी वशीभूत कराने वाला है। सूर्यवंशेन्द्र ! किसी भी देवता के कवच, स्तोत्र, सहस्त्रनाम, पटल तथा पद्धतिये पाँच अंग विद्वानों ने बताये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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