गर्ग संहिता
श्रीविज्ञान खण्ड : अध्याय 9
पूजोपचार तथा पूजन प्रकार का वर्णन श्री व्यासजी बोले- महाराज ! पूजन-सामग्री अर्पण करने के सुन्दर मन्त्र वेद में कहे गये हैं। मैं तुम्हारे लिये उनका वर्णन करता हूँ। एकाग्र मन होकर सुनो। ( मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पूजा करनी चाहिये। मन्त्र अर्थ सहित निम्नलिखित हैं) आवाहन- गोविन्द ! आप गोलोकधाम के स्वामी हैं। दीनों पर दया करना आपका स्वभाव है। दामोदर ! आप लक्ष्मी एवं राधिकाजी के प्राणनाथ हैं। यादवों के अधीश्वर हैं। माधव ! इस सिंहासन पर मेरे सामने आप विराजमान होइये। आसन- श्रीपद्मरागस्फुरदूर्ध्वपृष्ठं वैकुण्ठपते ! इस आसन के ऊपर की पीठ पर नीलम चमक रहा है। पायों में वैदूर्यमणि (पुखराज) जड़ी गयी है। यह बिजली के समान चमकती हुई सुवर्ण की कलशियों से युक्त है। कृपया आप इसे ग्रहण कीजिये। पाद्य- परं स्थितं निर्मलरौक्मपात्रे देवेश ! स्वच्छ सुवर्ण के पात्र में बिन्दु सरोवर से लाकर उत्तम जल रखा गया है। योगेश ! आप जगत के अधिष्ठाता हैं। मैं आपके चरणों को प्रणाम करता हूँ। आप इस पाद्य को स्वीकार करें। अर्घ्य– रमा-रमण प्रभो ! यदुपते ! यदुनाथ ! यदूत्तम ! कमल तथा चम्पा के पुष्पों से समन्वित तथा शंख में भरे हुए इस निर्मल उत्तम अर्घ्य को ग्रहण करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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