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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
द्वितीय स्कन्ध
अज्ञानी लोगो का दिन बीत जाता है अर्थोपार्जन में और रात निद्रा तथा कामोपभोग मे। अज्ञानी लोगो का समय इसी प्रकार बीत जाता है, परन्तु ज्ञानी पुरुषो का समय ज्ञानचर्चा में व्यतीत होता है।
अज्ञानी लोगों का समय ताश खेलने में, किसी व्यसन में, या निद्रा में ही व्यतीत हो जाता है। वे लोग देह-गेह में, परिवार में इस प्रकार मस्त हो जाते हैं कि मरण दिखते हुए भी, उसे देख नहीं पाते - ‘पश्यन्नपि न पश्यति’। कितने ही लोगों को स्मशान में पहुँचाकर आए होंगे, कभी-कभी तो बूढ़ा पिता अपने जवान बेटे की चिता अग्नि देकर आता है, फिर भी उसे अपना मरण नहीं दिखता। जग में यह कितनी विचित्र स्थिति है। यहाँ वही बताया गया है जो जगत् में देखा जाता है। प्रतिक्षण इतने लोग मरते रहते हैं, लोग चिता को अग्नि देकर आते हैं और फिर सोचते है कि अब खाएँगे क्या? हम लोग ऐसे ही हैं, किसी के मरण का समाचार मिलता है तो सोचते हैं, स्मशान जाने के पहले अच्छी तरह से खा लें। वहाँ कितना समय लगेगा, पता नहीं। वैसे बात तो सच है, परन्तु यह है मात्र व्यावहारिक दृष्टि। कहाँ कहने का अर्थ इतना ही है कि लोग मरण को देखते हुए भी नहीं देखते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भर्तृहरिसुभाषितमाला
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