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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.नारदजी के पूर्व जन्म की कथा
एक बार बिजली चमकी और मेरे ऊपर गिरी। उससे मेरा देह छूट गया और प्रलय के समय, मैं भगवान के साथ एकरूप हो गया। फिर जब अगला (वर्तमान) कल्प प्रकट हुआ, तब मेरा जन्म देवर्षि के रूप में हुआ। मैं यह बात इसलिए बता रहा हूँ कि भगवान का जो प्रेम है, वही सबसे बड़ी चीज है। भगवद्-भक्ति से ही सच्चा सुख मिलता है। अब देखो, मुझे वीणा (देवदत्त वीणा) मिल गयी, मैं नारायण नारायण’ करते हुए घूमता रहता हूँ। मुझे दूसरा कोई काम-धाम है। नहीं। ये नारद भगवान तो ऐसे सन्त हैं। कि राक्षसों के पास या देवताओं के पास, ऋषियों के पास जाएँ चाहे मनुष्यों के पास, सर्वत्र इनका स्वागत होता है, भले ही सबको मालूम है कि ये सब जगह जाते रहते हैं। यह एक बड़ी विचित्र बात है कि भगवान से द्वेष करने वाले लोग तो थे, लेकिन नारदजी से द्वेष करने वाला कोई हुआ ही नहीं। नारदमुनि इस प्रकार कहकर चले गये। तब भगवान वेदव्यास जी स्नान करके ध्यान में बैठे और ध्यान में उन्होंने ब्रह्म को आदिशक्ति माया के साथ देखा। फिर, जिस प्रकार नारदजी ने उन्हें बताया था उसी प्रकार वर्णन करके उन्होंने भागवत की रचना की। यह जो अठारहवाँ पुराण, उन्होंने रचा, वह महापुराण है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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