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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
16.भगवान श्रीकृष्ण से उद्धव जी की प्रार्थना
उद्धव जी को लगा अब मैं संत के पास कहाँ जाऊँ? सबसे बड़े भगवान स्वयं यहाँ बैठे हैं, तब मैं यहाँ-वहाँ क्यों जाऊँ? वे कहते हैं, “मैं कहीं नहीं जाता। आपके पास ही बैठूँगा!”
तब भगवान श्रीकृष्ण उद्धव जी से कहते हैं, “तुम समझ गये हो कि अब मैं क्या करने वाला हूँ। अब यहाँ मेरा काम समाप्त हो गया है। आज के सातवें दिन द्वारका नगरी समुद्र में डूब जायेगी। मेरे प्रस्थान के बाद यहाँ कलियुग का प्रवेश हो जायेगा और सब कुछ उलटा-पुलटा हो जायेगा।”
“मेरे जाने के बाद इस पृथ्वी (इस स्थान पर) पर तुम भी मत रहना। क्योंकि कलियुग में यहाँ रहने वालों की अधर्म की ओर प्रवृत्ति हो जायेगी। सब कुछ छोड़कर तुम अपना मन मुझमें ही लगा देना और ज्ञान का आश्रय लेकर ज्ञानी पुरुष के समान रहना।” अब आगे बढ़ने के पूर्व, यहाँ एक बात ध्यान में लाने योग्य है। यहाँ एक प्रश्न यह उठ सकता है कि उद्धव जी भी उसी यदुवंश के थे तब वे कैसे बचे रह गए? आपस में कलह के कारण, पूरे यदुवंश का संहार हो गया तो उद्धव जी का संहार क्यों नहीं हुआ? भगवान भी चले गए, बलराम जी भी चले गए तब केवल उद्धव जी क्यों रह गए? तो बात यह है कि भगवान ने सोचा कि उद्धव जी किसी बात में मुझसे कम नहीं हैं। इसलिए मेरे बाद ये यहाँ मेरे प्रतिनिधि के रूप में रहकर ध्यान करें, मेरे द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान का प्रचार करें। ऐसा सोचकर, भगवान ने उन्हें ज्ञान दिया और विनाश के पूर्व ही बदरिकाश्रम भेज दिया। उनको वहाँ रहने नहीं दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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